Niyamsar (Hindi). Gatha: 177.

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नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
जाइजरमरणरहियं परमं कम्मट्ठवज्जियं सुद्धं
णाणाइचउसहावं अक्खयमविणासमच्छेयं ।।१७७।।
जातिजरामरणरहितं परमं कर्माष्टवर्जितं शुद्धम्
ज्ञानादिचतुःस्वभावं अक्षयमविनाशमच्छेद्यम् ।।१७७।।
कारणपरमतत्त्वस्वरूपाख्यानमेतत
निसर्गतः संसृतेरभावाज्जातिजरामरणरहितम्, परमपारिणामिकभावेन परमस्वभाव-

त्वात्परमम्, त्रिकालनिरुपाधिस्वरूपत्वात् कर्माष्टकवर्जितम्, द्रव्यभावकर्मरहितत्वाच्छुद्धम्, सहजज्ञानसहजदर्शनसहजचारित्रसहजचिच्छक्ति मयत्वाज्ज्ञानादिचतुःस्वभावम्, सादिसनिधन- पाँच प्रकारके संसारसे मुक्त, पाँच प्रकारके मोक्षरूपी फलको देनेवाले (अर्थात् द्रव्यपरावर्तन, क्षेत्रपरावर्तन, कालपरावर्तन, भवपरावर्तन और भावपरावर्तनसे मुक्त करनेवाले), पाँचप्रकार सिद्धोंको (अर्थात् पाँच प्रकारकी मुक्तिकोसिद्धिकोप्राप्त सिद्धभगवन्तोंको) मैं पाँच प्रकारके संसारसे मुक्त होनेके लिये वन्दन करता हूँ २९५

गाथा : १७७ अन्वयार्थ :(परमात्मतत्त्व) [जातिजरामरणरहितम् ] जन्म - जरा - मरण रहित, [परमम् ] परम, [कर्माष्टवर्जितम् ] आठ कर्म रहित, [शुद्धम् ] शुद्ध, [ज्ञानादि-चतुःस्वभावम् ] ज्ञानादिक चार स्वभाववाला, [अक्षयम् ] अक्षय, [अविनाशम् ] अविनाशी और [अच्छेद्यम् ] अच्छेद्य है

टीका :(जिसका सम्पूर्ण आश्रय करनेसे सिद्ध हुआ जाता है ऐसे) कारणपरमतत्त्वके स्वरूपका यह कथन है

(कारणपरमतत्त्व ऐसा है :) निसर्गसे (स्वभावसे) संसारका अभाव होनेके कारण जन्म - जरा - मरण रहित है; परम - पारिणामिकभाव द्वारा परमस्वभाववाला होनेके कारण परम है; तीनों काल निरुपाधि - स्वरूपवाला होनेके कारण आठ कर्म रहित है; द्रव्यकर्म और भावकर्म रहित होनेके कारण शुद्ध है; सहजज्ञान, सहजदर्शन, सहजचारित्र और सहजचित्शक्तिमय होनेके कारण ज्ञानादिक चार स्वभाववाला है; सादि - सांत, मूर्त

विन कर्म, परम, विशुद्ध, जन्म-जरा-मरणसे हीन है
ज्ञानादि चार स्वभावमय, अक्षय, अछेद, अछीन है ।।१७७।।