पाँच प्रकारके संसारसे मुक्त, पाँच प्रकारके मोक्षरूपी फलको देनेवाले (अर्थात्
द्रव्यपरावर्तन, क्षेत्रपरावर्तन, कालपरावर्तन, भवपरावर्तन और भावपरावर्तनसे मुक्त
करनेवाले), पाँचप्रकार सिद्धोंको (अर्थात् पाँच प्रकारकी मुक्तिको — सिद्धिको — प्राप्त
सिद्धभगवन्तोंको) मैं पाँच प्रकारके संसारसे मुक्त होनेके लिये वन्दन करता हूँ ।२९५।
गाथा : १७७ अन्वयार्थ : — (परमात्मतत्त्व) [जातिजरामरणरहितम् ] जन्म -
जरा - मरण रहित, [परमम् ] परम, [कर्माष्टवर्जितम् ] आठ कर्म रहित, [शुद्धम् ] शुद्ध,
[ज्ञानादि-चतुःस्वभावम् ] ज्ञानादिक चार स्वभाववाला, [अक्षयम् ] अक्षय, [अविनाशम् ]
अविनाशी और [अच्छेद्यम् ] अच्छेद्य है ।
टीका : — (जिसका सम्पूर्ण आश्रय करनेसे सिद्ध हुआ जाता है ऐसे)
कारणपरमतत्त्वके स्वरूपका यह कथन है ।
(कारणपरमतत्त्व ऐसा है : — ) निसर्गसे (स्वभावसे) संसारका अभाव होनेके
कारण जन्म - जरा - मरण रहित है; परम - पारिणामिकभाव द्वारा परमस्वभाववाला होनेके
कारण परम है; तीनों काल निरुपाधि - स्वरूपवाला होनेके कारण आठ कर्म रहित है;
द्रव्यकर्म और भावकर्म रहित होनेके कारण शुद्ध है; सहजज्ञान, सहजदर्शन, सहजचारित्र
और सहजचित्शक्तिमय होनेके कारण ज्ञानादिक चार स्वभाववाला है; सादि - सांत, मूर्त
जाइजरमरणरहियं परमं कम्मट्ठवज्जियं सुद्धं ।
णाणाइचउसहावं अक्खयमविणासमच्छेयं ।।१७७।।
जातिजरामरणरहितं परमं कर्माष्टवर्जितं शुद्धम् ।
ज्ञानादिचतुःस्वभावं अक्षयमविनाशमच्छेद्यम् ।।१७७।।
कारणपरमतत्त्वस्वरूपाख्यानमेतत् ।
निसर्गतः संसृतेरभावाज्जातिजरामरणरहितम्, परमपारिणामिकभावेन परमस्वभाव-
त्वात्परमम्, त्रिकालनिरुपाधिस्वरूपत्वात् कर्माष्टकवर्जितम्, द्रव्यभावकर्मरहितत्वाच्छुद्धम्,
सहजज्ञानसहजदर्शनसहजचारित्रसहजचिच्छक्ति मयत्वाज्ज्ञानादिचतुःस्वभावम्, सादिसनिधन-
३५४ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
विन कर्म, परम, विशुद्ध, जन्म-जरा-मरणसे हीन है ।
ज्ञानादि चार स्वभावमय, अक्षय, अछेद, अछीन है ।।१७७।।