Niyamsar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]शुद्धोपयोग अधिकार[ ३५९
असातावेदनीयकर्माभावान्नैव विद्यते बाधा, पंचविधनोकर्माभावान्न मरणम्, पंचविध-
नोकर्महेतुभूतकर्मपुद्गलस्वीकाराभावान्न जननम्
एवंलक्षणलक्षिताक्षुण्णविक्षेपविनिर्मुक्त -
परमतत्त्वस्य सदा निर्वाणं भवतीति
(मालिनी)
भवभवसुखदुःखं विद्यते नैव बाधा
जननमरणपीडा नास्ति यस्येह नित्यम्
तमहमभिनमामि स्तौमि संभावयामि
स्मरसुखविमुखस्सन् मुक्ति सौख्याय नित्यम्
।।२९८।।
(अनुष्टुभ्)
आत्माराधनया हीनः सापराध इति स्मृतः
अहमात्मानमानन्दमंदिरं नौमि नित्यशः ।।२९९।।
यातनाशरीरके अभावके कारण पीड़ा नहीं है; असातावेदनीय कर्मके अभावके कारण
बाधा नहीं है; पाँच प्रकारके नोकर्मके अभावके कारण मरण नहीं है पाँच प्रकारके
नोकर्मके हेतुभूत कर्मपुद्गलके स्वीकारके अभावके कारण जन्म नहीं है ऐसे
लक्षणोंसेलक्षित, अखण्ड, विक्षेपरहित परमतत्त्वको सदा निर्वाण है

[अब इस १७९वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज दो श्लोक कहते हैं : ]

[श्लोकार्थ : ] इस लोकमें जिसे सदा भवभवके सुखदुःख नहीं हैं, बाधा नहीं है, जन्म, मरण और पीड़ा नहीं है, उसे (उस परमात्माको ) मैं, मुक्तिसुखकी प्राप्ति हेतु, कामदेवके सुखसे विमुख वर्तता हुआ नित्य नमन करता हूँ, उसका स्तवन करता हूँ, सम्यक् प्रकारसे भाता हूँ २९८

[श्लोकार्थ : ] आत्माकी आराधना रहित जीवको सापराध (अपराधी) माना गया है (इसलिये ) मैं आनन्दमन्दिर आत्माको (आनन्दके घररूप निजात्माको) नित्य नमन करता हूँ २९९ यातना = वेदना; पीड़ा (शरीर वेदनाकी मूर्ति है )