Niyamsar (Hindi). Gatha: 187.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]शुद्धोपयोग अधिकार[ ३७१
णियभावणाणिमित्तं मए कदं णियमसारणामसुदं
णच्चा जिणोवदेसं पुव्वावरदोसणिम्मुक्कं ।।१८७।।
निजभावनानिमित्तं मया कृतं नियमसारनामश्रुतम्
ज्ञात्वा जिनोपदेशं पूर्वापरदोषनिर्मुक्त म् ।।१८७।।
शास्त्रनामधेयकथनद्वारेण शास्त्रोपसंहारोपन्यासोऽयम्
अत्राचार्याः प्रारब्धस्यान्तगमनत्वात् नितरां कृतार्थतां परिप्राप्य निजभावनानिमित्त-

मशुभवंचनार्थं नियमसाराभिधानं श्रुतं परमाध्यात्मशास्त्रशतकुशलेन मया कृतम् किं कृत्वा ? पूर्वं ज्ञात्वा अवंचकपरमगुरुप्रसादेन बुद्ध्वेति कम् ? जिनोपदेशं वीतरागसर्वज्ञ- मुखारविन्दविनिर्गतपरमोपदेशम् तं पुनः किंविशिष्टम् ? पूर्वापरदोषनिर्मुक्तं पूर्वापरदोष- हेतुभूतसकलमोहरागद्वेषाभावादाप्तमुखविनिर्गतत्वान्निर्दोषमिति

गाथा : १८७ अन्वयार्थ :[पूर्वापरदोषनिर्मुक्तम् ] पूर्वापर दोष रहित [जिनोपदेशं ] जिनोपदेशको [ज्ञात्वा ] जानकर [मया ] मैंने [निजभावनानिमित्तं ] निजभावनानिमित्तसे [नियमसारनामश्रुतम् ] नियमसार नामका शास्त्र [कृतम् ] किया है

टीका :यह, शास्त्रके नामकथन द्वारा शास्त्रके उपसंहार सम्बन्धी कथन है

यहाँ आचार्यश्री (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेव ) प्रारम्भ किये हुए कार्यके अन्तको प्राप्त करनेसे अत्यन्त कृतार्थताकोे पाकर कहते हैं कि सैंकड़ों परम अध्यात्मशास्त्रोंमें कुशल ऐसे मैंने निजभावनानिमित्तसेअशुभवंचनार्थ नियमसार नामक शास्त्र किया है क्या करके (यह शास्त्र किया है) ? प्रथम ×अवंचक परम गुरुके प्रसादसे जानकर क्या जानकर ? जिनोपदेशको अर्थात् वीतराग - सर्वज्ञके मुखारविन्दसे निकले हुए परम उपदेशको कैसा है वह उपदेश ? पूर्वापर दोष रहित है अर्थात् पूर्वापर दोषके हेतुभूत सकल मोहरागद्वेषके अभावके कारण जो आप्त हैं उनके मुखसे निकला होनेसे निर्दोष है × अवंचक = ठगें नहीं ऐसे; निष्कपट; सरल; ऋजु

सब दोष पूर्वापर रहित उपदेश श्री जिनदेवका
मैं जान, अपनी भावना हित नियमसार सुश्रुत रचा ।।१८७।।