और श्री विद्यानन्दस्वामीने (श्लोक द्वारा) कहा है किः —
‘‘[श्लोेकार्थ : — ] इष्ट फलकी सिद्धिका उपाय सुबोध है (अर्थात् मुक्तिकी
प्राप्तिका उपाय सम्यग्ज्ञान है ), सुबोध सुशास्त्रसे होता है, सुशास्त्रकी उत्पत्ति आप्तसे होती
है; इसलिये उनके प्रसादके कारण आप्त पुरुष बुधजनों द्वारा पूजनेयोग्य हैं (अर्थात् मुक्ति
सर्वज्ञदेवकी कृपाका फल होनेसे सर्वज्ञदेव ज्ञानियों द्वारा पूजनीय हैं ), क्योंकि किये हुए
उपकारको साधु पुरुष (सज्जन) भूलते नहीं हैं ।’’
और (छठवीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्री
पद्मप्रभमलधारिदेव श्लोक द्वारा सर्वज्ञ भगवान श्री नेमिनाथकी स्तुति करते हैं ): —
[श्लोेकार्थ : — ] जो सौ इन्द्रोंसे पूज्य हैं, जिनका सद्बोधरूपी (सम्यग्ज्ञानरूपी)
राज्य विशाल है, कामविजयी (लौकांतिक) देवोंके जो नाथ हैं, दुष्ट पापोंके समूहका
जिन्होंने नाश किया है, श्री कृष्ण जिनके चरणोंमें नमें हैं, भव्यकमलके जो सूर्य हैं (अर्थात्
भव्योंरूपी कमलोंको विकसित करनेमें जो सूर्य समान हैं ), वे आनन्दभूमि नेमिनाथ
( – आनन्दके स्थानरूप नेमिनाथ भगवान) हमें शाश्वत सुख प्रदान करें
।१३।
तथा चोक्तं श्रीविद्यानंदस्वामिभिः —
(मालिनी)
‘‘अभिमतफलसिद्धेरभ्युपायः सुबोधः
स च भवति सुशास्त्रात्तस्य चोत्पत्तिराप्तात् ।
इति भवति स पूज्यस्तत्प्रसादात्प्रबुद्धैः
न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति ।।’’
तथा हि —
(मालिनी)
शतमखशतपूज्यः प्राज्यसद्बोधराज्यः
स्मरतिरसुरनाथः प्रास्तदुष्टाघयूथः ।
पदनतवनमाली भव्यपद्मांशुमाली
दिशतु शमनिशं नो नेमिरानन्दभूमिः ।।१३।।
१६ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-