तथा चोक्तं श्रीमदमृतचन्द्रसूरिभिः — परमात्मा — अर्थात् त्रिकालनिरावरण, १नित्यानन्द – एकस्वरूप निज कारणपरमात्माकी भावनासे उत्पन्न कार्यपरमात्मा, वही भगवान अर्हत् परमेश्वर हैं । इन भगवान परमेश्वरके गुणोंसे विपरीत गुणोंवाले समस्त (देवाभास), भले देवत्वके अभिमानसे दग्ध हों तथापि, संसारी हैं । — ऐसा (इस गाथाका) अर्थ है ।
इसीप्रकार (भगवान) श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेवने (२प्रवचनसारकी गाथामें) कहा है किः —
‘‘[गाथार्थः — ] तेज (भामण्डल), दर्शन (केवलदर्शन), ज्ञान (केवलज्ञान), ऋद्धि (समवसरणादि विभूति), सौख्य (अनन्त अतीन्द्रिय सुख), (इन्द्रादिक भी दासरूपसे वर्ते ऐसा) ऐश्वर्य, और (तीन लोकके अधिपतियोंके वल्लभ होनेरूप) त्रिभुवनप्रधानवल्लभपना — ऐसा जिनका माहात्म्य है, वे अर्हंत हैं ।’’
और इसीप्रकार (आचार्यदेव) श्रीमद् अमृतचन्द्रसूरिने (आत्मख्यातिके २४वें श्लोकमें – कलशमें) कहा है कि : — १-नित्यानन्द-एकस्वरूप=नित्य आनन्द ही जिसका एक स्वरूप है ऐसा । [कारणपरमात्मा त्रिकाल
शक्तिरूप परमात्माको कारणपरमात्मा कहा जाता है और व्यक्त परमात्माको कार्यपरमात्मा कहा जाता है ।] २-देखो, श्री प्रवचनसार, श्री जयसेनाचार्यकृत ‘तात्पर्यवृत्ति’ टीका, पृष्ठ ११९ ।