Niyamsar (Hindi).

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परमात्माअर्थात् त्रिकालनिरावरण, नित्यानन्दएकस्वरूप निज कारणपरमात्माकी
भावनासे उत्पन्न कार्यपरमात्मा, वही भगवान अर्हत् परमेश्वर हैं इन भगवान परमेश्वरके
गुणोंसे विपरीत गुणोंवाले समस्त (देवाभास), भले देवत्वके अभिमानसे दग्ध हों तथापि,
संसारी हैं
ऐसा (इस गाथाका) अर्थ है
इसीप्रकार (भगवान) श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेवने (प्रवचनसारकी गाथामें) कहा
है किः
‘‘[गाथार्थः] तेज (भामण्डल), दर्शन (केवलदर्शन), ज्ञान (केवलज्ञान),
ऋद्धि (समवसरणादि विभूति), सौख्य (अनन्त अतीन्द्रिय सुख), (इन्द्रादिक भी
दासरूपसे वर्ते ऐसा) ऐश्वर्य, और (तीन लोकके अधिपतियोंके वल्लभ होनेरूप)
त्रिभुवनप्रधानवल्लभपना
ऐसा जिनका माहात्म्य है, वे अर्हंत हैं ’’
और इसीप्रकार (आचार्यदेव) श्रीमद् अमृतचन्द्रसूरिने (आत्मख्यातिके २४वें
श्लोकमेंकलशमें) कहा है कि :
१८ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
कार्यपरमात्मा स एव भगवान् अर्हन् परमेश्वरः अस्य भगवतः परमेश्वरस्य
विपरीतगुणात्मकाः सर्वे देवाभिमानदग्धा अपि संसारिण इत्यर्थः
तथा चोक्तं श्रीकुन्दकुन्दाचार्यदेवैः
‘‘तेजो दिट्ठी णाणं इड्ढी सोक्खं तहेव ईसरियं
तिहुवणपहाणदइयं माहप्पं जस्स सो अरिहो ।।’’
तथा चोक्तं श्रीमदमृतचन्द्रसूरिभिः
१-नित्यानन्द-एकस्वरूप=नित्य आनन्द ही जिसका एक स्वरूप है ऐसा [कारणपरमात्मा त्रिकाल
आवरणरहित है और नित्य आनन्द ही उसका एक स्वरूप है प्रत्येक आत्मा शक्ति-अपेक्षासे निरावरण
एवं आनन्दमय ही है इसलिये प्रत्येक आत्मा कारणपरमात्मा है; जो कारणपरमात्माको भाता है
उसीका आश्रय करता है, वह व्यक्ति - अपेक्षासे निरावरण और आनन्दमय होता है अर्थात् कार्यपरमात्मा
होता है शक्तिमेंसे व्यक्ति होती है, इसलिये शक्ति कारण है और व्यक्ति कार्य है ऐसा होनेसे
शक्तिरूप परमात्माको कारणपरमात्मा कहा जाता है और व्यक्त परमात्माको कार्यपरमात्मा कहा जाता
है
]
२-देखो, श्री प्रवचनसार, श्री जयसेनाचार्यकृत ‘तात्पर्यवृत्ति’ टीका, पृष्ठ ११९