निर्नाशनसमर्थसजलजलदेन कथिताः खलु सप्त तत्त्वानि नव पदार्थाश्चेति ।
तथा चोक्तं श्रीसमन्तभद्रस्वामिभिः —
(आर्या)
‘‘अन्यूनमनतिरिक्तं याथातथ्यं विना च विपरीतात् ।
निःसन्देहं वेद यदाहुस्तज्ज्ञानमागमिनः ।।’’
(हरिणी)
ललितललितं शुद्धं निर्वाणकारणकारणं
निखिलभविनामेतत्कर्णामृतं जिनसद्वचः ।
भवपरिभवारण्यज्वालित्विषां प्रशमे जलं
प्रतिदिनमहं वन्दे वन्द्यं सदा जिनयोगिभिः ।।१५।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]जीव अधिकार[ २१
रागरूप अंगारों द्वारा सिकते हुए समस्त दीन जनोंके महाक्लेशका नाश करनेमें समर्थ
सजल मेघ ( – पानीसे भरा हुआ बादल) है, उसने — वास्तवमें सात तत्त्व तथा नव
पदार्थ कहे हैं ।
इसीप्रकार (आचार्यदेव) श्री समन्तभद्रस्वामीने (रत्नकरण्डश्रावकाचारमें ४२वें
श्लोक द्वारा) कहा है किः —
‘‘[श्लोेकार्थ : — ] जो न्यूनता बिना, अधिकता बिना, विपरीतता बिना यथातथ
वस्तुस्वरूपको निःसन्देहरूपसे जानता है उसे १आगमियों ज्ञान ( – सम्यग्ज्ञान) कहते
हैं ।’’
[अब, आठवीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक द्वारा
जिनवाणीको — जिनागमको वन्दन करते हैं : ]
[श्लोेकार्थ : — ] जो (जिनवचन) २ललितमें ललित हैं, जो शुद्ध हैं, जो निर्वाणके
कारणका कारण हैं, जो सर्व भव्योंके कर्णोंको अमृत हैं, जो भवभवरूपी अरण्यके उग्र
दावानलको शांत करनेमें जल हैं और जो जैन योगियों द्वारा सदा वंद्य हैं, ऐसे इन
जिनभगवानके सद्वचनोंको (सम्यक् जिनागमको) मैं प्रतिदिन वन्दन करता हूँ ।१५।
१-आगमियों = आगमवन्तों; आगमके ज्ञाताओं ।
२-ललितमें ललित = अत्यन्त प्रसन्नता उत्पन्न करें ऐसे; अतिशय मनोहर ।