Niyamsar (Hindi). Gatha: 9.

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२२ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
जीवा पोग्गलकाया धम्माधम्मा य काल आयासं
तच्चत्था इदि भणिदा णाणागुणपज्जएहिं संजुत्ता ।।9।।
जीवाः पुद्गलकाया धर्माधर्मौ च काल आकाशम्
तत्त्वार्था इति भणिताः नानागुणपर्यायैः संयुक्ताः ।।9।।
अत्र षण्णां द्रव्याणां पृथक्पृथक् नामधेयमुक्त म्
स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रमनोवाक्कायायुरुच्छ्वासनिःश्वासाभिधानैर्दशभिः प्राणैः जीवति

जीविष्यति जीवितपूर्वो वा जीवः संग्रहनयोऽयमुक्त : निश्चयेन भावप्राणधारणाज्जीवः व्यवहारेण द्रव्यप्राणधारणाज्जीवः शुद्धसद्भूतव्यवहारेण केवलज्ञानादिशुद्धगुणानामाधारभूतत्वा- त्कार्यशुद्धजीवः अशुद्धसद्भूतव्यवहारेण मतिज्ञानादिविभावगुणानामाधारभूतत्वादशुद्धजीवः

गाथा : ९ अन्वयार्थ :[जीवाः ] जीव, [पुद्गलकायाः ] पुद्गलकाय, [धर्माधर्मौ ] धर्म, अधर्म, [कालः ] काल, [च ] और [आकाशम् ] आकाश [तत्त्वार्थाः इति भणिताः ] यह तत्त्वार्थ कहे हैं, जो कि [नानागुणपर्यायैः संयुक्ताः ] विविध गुणपर्यायोंसे संयुक्त हैं ।

टीका :यहाँ (इस गाथामें), छह द्रव्योंके पृथक्-पृथक् नाम कहे गये हैं

स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र, मन, वचन, काय, आयु और श्वासोच्छवास नामक दस प्राणोंसे (संसारदशामें) जो जीता है, जियेगा और पूर्वकालमें जीता था वह ‘जीव’ है यह संग्रहनय कहा निश्चयसे भावप्राण धारण करनेके कारण ‘जीव’ है व्यवहारसे द्रव्यप्राण धारण करनेके कारण ‘जीव’ है शुद्ध-सद्भूत-व्यवहारसे केवलज्ञानादि शुद्धगुणोंका आधार होनेके कारण ‘कार्यशुद्ध जीव’ है अशुद्ध-सद्भूत-व्यवहारसे मतिज्ञानादि विभावगुणोंका आधार होनेके कारण ‘अशुद्ध जीव’ है शुद्धनिश्चयसे सहजज्ञानादि परमस्वभावगुणोंका आधार होनेके कारण ‘कारणशुद्ध जीव’ है यह (जीव)

प्रत्येक जीव शक्ति-अपेक्षासे शुद्ध है अर्थात् सहजज्ञानादिक सहित है इसलिये प्रत्येक जीव ‘कारणशुद्ध
षट् द्रव्य पुद्गल, जीव, धर्म, अधर्म, कालाकाश हैं
ये विविध गुणपर्यायसे संयुक्त षट् तत्त्वार्थ हैं ।।।।