Niyamsar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 25 of 388
PDF/HTML Page 52 of 415

 

background image
जीव उपयोगमयः उपयोगो ज्ञानदर्शनं भवति
ज्ञानोपयोगो द्विविधः स्वभावज्ञानं विभावज्ञानमिति ।।१०।।
अत्रोपयोगलक्षणमुक्त म्
आत्मनश्चैतन्यानुवर्ती परिणामः स उपयोगः अयं धर्मः जीवो धर्मी अनयोः
सम्बन्धः प्रदीपप्रकाशवत ज्ञानदर्शनविकल्पेनासौ द्विविधः अत्र ज्ञानोपयोगोऽपि स्वभाव-
विभावभेदाद् द्विविधो भवति इह हि स्वभावज्ञानम् अमूर्तम् अव्याबाधम् अतीन्द्रियम्
अविनश्वरम् तच्च कार्यकारणरूपेण द्विविधं भवति कार्यं तावत् सकलविमलकेवलज्ञानम्
तस्य कारणं परमपारिणामिकभावस्थितत्रिकालनिरुपाधिरूपं सहजज्ञानं स्यात केवलं विभाव-
रूपाणि ज्ञानानि त्रीणि कुमतिकुश्रुतविभङ्गभाञ्जि भवन्ति एतेषाम् उपयोगभेदानां ज्ञानानां
भेदो वक्ष्यमाणसूत्रयोर्द्वयोर्बोद्धव्य इति
कहानजैनशास्त्रमाला ]जीव अधिकार[ २५
गाथा : १० अन्वयार्थ :[जीवः ] जीव [उपयोगमयः ] उपयोगमय है [उपयोगः ]
उपयोग [ज्ञानदर्शनं भवति ] ज्ञान और दर्शन है [ज्ञानोपयोगः द्विविधः ] ज्ञानोपयोग दो
प्रकारका है : [स्वभावज्ञानं ] स्वभावज्ञान और [विभावज्ञानम् इति ] विभावज्ञान
टीका :यहाँ (इस गाथामें) उपयोगका लक्षण कहा है
आत्माका चैतन्य-अनुवर्ती (चैतन्यका अनुसरण करके वर्तनेवाला) परिणाम सो
उपयोग है उपयोग धर्म है, जीव धर्मी है दीपक और प्रकाश जैसा उनका सम्बन्ध है
ज्ञान और दर्शनके भेदसे यह उपयोग दो प्रकारका है (अर्थात् उपयोगके दो प्रकार हैं :
ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग)
इनमें ज्ञानोपयोग भी स्वभाव और विभावके भेदके कारण
दो प्रकारका है (अर्थात् ज्ञानोपयोगके भी दो प्रकार हैं : स्वभावज्ञानोपयोग और
विभावज्ञानोपयोग)
उनमें स्वभावज्ञान अमूर्त, अव्याबाध, अतीन्द्रिय और अविनाशी है; वह
भी कार्य और कारणरूपसे दो प्रकारका है (अर्थात् स्वभावज्ञानके भी दो प्रकार हैं :
कार्यस्वभावज्ञान और कारणस्वभावज्ञान)
कार्य तो सकलविमल (सर्वथा निर्मल)
केवलज्ञान है और उसका कारण परम पारिणामिकभावसे स्थित त्रिकालनिरुपाधिक
सहजज्ञान है
केवल विभावरूप ज्ञान तीन हैं : कुमति, कुश्रुत और विभङ्ग
इस उपयोगके भेदरूप ज्ञानके भेद, अब कहे जानेवाले दो सूत्रों द्वारा (११ और
१२वीं गाथा द्वारा) जानना
[भावार्थःचैतन्यानुविधायी परिणाम वह उपयोग है उपयोग दो प्रकारका है :