(मालिनी)
अथ सकलजिनोक्त ज्ञानभेदं प्रबुद्ध्वा
परिहृतपरभावः स्वस्वरूपे स्थितो यः ।
सपदि विशति यत्तच्चिच्चमत्कारमात्रं
स भवति परमश्रीकामिनीकामरूपः ।।१७।।
केवलमिंदियरहियं असहायं तं सहावणाणं ति ।
सण्णाणिदरवियप्पे विहावणाणं हवे दुविहं ।।११।।
२६ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
(१) ज्ञानोपयोग और (२) दर्शनोपयोग । ज्ञानोपयोगके भी दो प्रकार हैं : (१) स्वभाव-
ज्ञानोपयोग और (२) विभावज्ञानोपयोग । स्वभावज्ञानोपयोग भी दो प्रकारका है : (१) कार्य-
स्वभावज्ञानोपयोग (अर्थात् केवलज्ञानोपयोग) और (२) कारणस्वभाव-ज्ञानोपयोग (अर्थात्
❃
सहजज्ञानोपयोग) । विभावज्ञानोपयोग भी दो प्रकारका है : (१) सम्यक् विभावज्ञानोपयोग
और (२) मिथ्या विभावज्ञानोपयोग (अर्थात् केवल विभावज्ञानोपयोग) । सम्यक्
विभावज्ञानोपयोगके चार भेद (सुमतिज्ञानोपयोग, सुश्रुतज्ञानोपयोग, सुअवधिज्ञानोपयोग और
मनःपर्ययज्ञानोपयोग) अब अगली दो गाथाओंमें कहेंगे । मिथ्या विभावज्ञानोपयोगके अर्थात्
केवल विभावज्ञानोपयोगके तीन भेद हैं : (१) कुमतिज्ञानोपयोग, (२) कुश्रुतज्ञानोपयोग और
(३) विभङ्गज्ञानोपयोग अर्थात् कुअवधिज्ञानोपयोग] ।
[अब दसवीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक कहते हैं :]
[श्लोेकार्थ : — ] जिनेन्द्रकथित समस्त ज्ञानके भेदोंको जानकर जो पुरुष
परभावोंका परिहार करके निज स्वरूपमें स्थित रहता हुआ शीघ्र चैतन्यचमत्कारमात्र तत्त्वमें
प्रविष्ट हो जाता है — गहरा उत्तर जाता है, वह पुरुष परमश्रीरूपी कामिनीका वल्लभ होता
है (अर्थात् मुक्तिसुन्दरीका पति होता है ) ।१७ ।
❃सहजज्ञानोपयोग परमपारिणामिकभावसे स्थित है तथा त्रिकाल उपाधि रहित है; उसमेंसे (सर्वको
जाननेवाला) केवलज्ञानोपयोग प्रगट होता है । इसलिये सहजज्ञानोपयोग कारण है और केवलज्ञानोपयोग
कार्य है । ऐसा होनेसे सहजज्ञानोपयोगको कारणस्वभावज्ञानोपयोग कहा जाता है और केवलज्ञानोपयोगको
कार्यस्वभावज्ञानोपयोग कहा जाता है ।
इन्द्रियरहित, असहाय, केवल वह स्वभाविक ज्ञान है ।
दो विधि विभाविकज्ञान — सम्यक् और मिथ्याज्ञान है ।।११।।