परिहृतपरभावः स्वस्वरूपे स्थितो यः ।
स भवति परमश्रीकामिनीकामरूपः ।।१७।।
(१) ज्ञानोपयोग और (२) दर्शनोपयोग । ज्ञानोपयोगके भी दो प्रकार हैं : (१) स्वभाव- ज्ञानोपयोग और (२) विभावज्ञानोपयोग । स्वभावज्ञानोपयोग भी दो प्रकारका है : (१) कार्य- स्वभावज्ञानोपयोग (अर्थात् केवलज्ञानोपयोग) और (२) कारणस्वभाव-ज्ञानोपयोग (अर्थात् ❃
और (२) मिथ्या विभावज्ञानोपयोग (अर्थात् केवल विभावज्ञानोपयोग) । सम्यक् विभावज्ञानोपयोगके चार भेद (सुमतिज्ञानोपयोग, सुश्रुतज्ञानोपयोग, सुअवधिज्ञानोपयोग और मनःपर्ययज्ञानोपयोग) अब अगली दो गाथाओंमें कहेंगे । मिथ्या विभावज्ञानोपयोगके अर्थात् केवल विभावज्ञानोपयोगके तीन भेद हैं : (१) कुमतिज्ञानोपयोग, (२) कुश्रुतज्ञानोपयोग और (३) विभङ्गज्ञानोपयोग अर्थात् कुअवधिज्ञानोपयोग] ।
[श्लोेकार्थ : — ] जिनेन्द्रकथित समस्त ज्ञानके भेदोंको जानकर जो पुरुष परभावोंका परिहार करके निज स्वरूपमें स्थित रहता हुआ शीघ्र चैतन्यचमत्कारमात्र तत्त्वमें प्रविष्ट हो जाता है — गहरा उत्तर जाता है, वह पुरुष परमश्रीरूपी कामिनीका वल्लभ होता है (अर्थात् मुक्तिसुन्दरीका पति होता है ) ।१७ । ❃सहजज्ञानोपयोग परमपारिणामिकभावसे स्थित है तथा त्रिकाल उपाधि रहित है; उसमेंसे (सर्वको जाननेवाला) केवलज्ञानोपयोग प्रगट होता है । इसलिये सहजज्ञानोपयोग कारण है और केवलज्ञानोपयोग
कार्यस्वभावज्ञानोपयोग कहा जाता है ।