Niyamsar (Hindi). Gatha: 12.

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सण्णाणं चउभेयं मदिसुदओही तहेव मणपज्जं
अण्णाणं तिवियप्पं मदियाई भेददो चेव ।।१२।।
केवलमिन्द्रियरहितं असहायं तत्स्वभावज्ञानमिति
संज्ञानेतरविकल्पे विभावज्ञानं भवेद् द्विविधम् ।।११।।
संज्ञानं चतुर्भेदं मतिश्रुतावधयस्तथैव मनःपर्ययम्
अज्ञानं त्रिविकल्पं मत्यादेर्भेदतश्चैव ।।१२।।
अत्र च ज्ञानभेदमुक्त म्
निरुपाधिस्वरूपत्वात् केवलम्, निरावरणस्वरूपत्वात् क्रमकरणव्यवधानापोढम्,
अप्रतिवस्तुव्यापकत्वात् असहायम्, तत्कार्यस्वभावज्ञानं भवति कारणज्ञानमपि ताद्रशं
कहानजैनशास्त्रमाला ]जीव अधिकार[ २७
गाथा : ११-१२ अन्वयार्थ :[केवलम् ] जो (ज्ञान) केवल,
[इन्द्रियरहितम् ] इन्द्रियरहित और [असहायं ] असहाय है, [तत् ] वह [स्वभावज्ञानम्
इति ]
स्वभावज्ञान है; [संज्ञानेतरविकल्पे ] सम्यग्ज्ञान और मिथ्याज्ञानरूप भेद किये जाने
पर, [विभावज्ञानं ] विभावज्ञान [द्विविधं भवेत् ] दो प्रकारका है
[संज्ञानं ] सम्यग्ज्ञान [चतुर्भेदं ] चार भेदवाला है : [मतिश्रुतावधयः तथा एव
मनःपर्ययम् ] मति, श्रुत, अवधि तथा मनःपर्यय; [अज्ञानं च एव ] और अज्ञान
(
मिथ्याज्ञान) [मत्यादेः भेदतः ] मति आदिके भेदसे [त्रिविकल्पम् ] तीन भेदवाला है
टीका :यहाँ (इन गाथाओंमें) ज्ञानके भेद कहे हैं
जो उपाधि रहित स्वरूपवाला होनेसे केवल है, आवरण रहित स्वरूपवाला होनेसे
क्रम, इन्द्रिय और (देशकालादि) व्यवधान रहित है, एकएक वस्तुमें व्याप्त नहीं होता
१ केवल = अकेला; शुद्ध; मिलावट रहित (निर्भेल)
२ व्यवधान = आड़; परदा; अन्तर; आँतर-दूरी; विघ्न
मति, श्रुत, अवधि, अरु मनःपर्यय चार सम्यग्ज्ञान है
अरु कुमति, कुश्रुत, कुअवधि ये तीन भेद मिथ्याज्ञान है ।।१२।।