Niyamsar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 28 of 388
PDF/HTML Page 55 of 415

 

background image
भवति कुतः, निजपरमात्मस्थितसहजदर्शनसहजचारित्रसहजसुखसहजपरमचिच्छक्ति निज-
कारणसमयसारस्वरूपाणि च युगपत् परिच्छेत्तुं समर्थत्वात् तथाविधमेव इति शुद्ध-
ज्ञानस्वरूपमुक्त म्
इदानीं शुद्धाशुद्धज्ञानस्वरूपभेदस्त्वयमुच्यते अनेकविकल्पसनाथं मतिज्ञानम् उप-
लब्धिभावनोपयोगाच्च अवग्रहादिभेदाच्च बहुबहुविधादिभेदाद्वा लब्धिभावनाभेदाच्छ्रुतज्ञानं
द्विविधम् देशसर्वपरमभेदादवधिज्ञानं त्रिविधम् ऋजुविपुलमतिविकल्पान्मनःपर्ययज्ञानं च
द्विविधम् परमभावस्थितस्य सम्यग्द्रष्टेरेतत्संज्ञानचतुष्कं भवति मतिश्रुतावधिज्ञानानि
मिथ्याद्रष्टिं परिप्राप्य कुमतिकुश्रुतविभंगज्ञानानीति नामान्तराणि प्रपेदिरे
२८ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
(समस्त वस्तुओंमें व्याप्त होता है ) इसलिये असहाय है, वह कार्यस्वभावज्ञान है ।
कारणज्ञान भी वैसा ही है काहेसे ? निज परमात्मामें विद्यमान सहजदर्शन, सहजचारित्र,
सहजसुख और सहजपरमचित्शक्तिरूप निज कारणसमयसारके स्वरूपोंको युगपद् जाननेमें
समर्थ होनेसे वैसा ही है
इस प्रकार शुद्ध ज्ञानका स्वरूप कहा
अब यह (निम्नानुसार), शुद्धाशुद्ध ज्ञानका स्वरूप और भेद कहे जाते हैं :
उपलब्धि, भावना और उपयोगसे तथा अवग्रहादि भेदसे अथवा बहु, बहुविध आदि
भेदसे मतिज्ञान अनेक भेदवाला है लब्धि और भावनाके भेदसे श्रुतज्ञान दो प्रकारका है
देश, सर्व और परमके भेदसे (अर्थात् देशावधि, सर्वावधि तथा परमावधि ऐसे तीन भेदोंके
कारण) अवधिज्ञान तीन प्रकारका है
ऋजुमति और विपुलमतिके भेदके कारण
मतिज्ञान तीन प्रकारका है : उपलब्धि, भावना और उपयोग मतिज्ञानावरणका क्षयोपशम जिसमें निमित्त
है ऐसी अर्थग्रहणशक्ति (पदार्थको जाननेकी शक्ति) सो उपलब्धि है; जाने हुए पदार्थके प्रति पुनः
पुनः चिंतन सो भावना है; ‘यह काला है,’ ‘यह पीला है’ इत्यादिरूप अर्थग्रहणव्यापार
(
पदार्थको जाननेका व्यापार) सो उपयोग है
मतिज्ञान चार भेदवाला है : अवग्रह, ईहा (विचारणा), अवाय (निर्णय) और धारणा [विशेषके
लिये मोक्षशास्त्र (सटीक) देखें ]
मतिज्ञान बारह भेदवाला है : बहु, एक, बहुविध, एकविध, क्षिप्र, अक्षिप्र, अनिःसृत, निःसृत, अनुक्त,
उक्त, ध्रुव तथा अध्रुव
[विशेषके लिये मोक्षशास्त्र (सटीक) देखें ]