Niyamsar (Hindi).

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(शार्दूलविक्रीडित)
शस्ताशस्तसमस्तरागविलयान्मोहस्य निर्मूलनाद्
द्वेषाम्भःपरिपूर्णमानसघटप्रध्वंसनात
् पावनम्
ज्ञानज्योतिरनुत्तमं निरुपधि प्रव्यक्ति नित्योदितं
भेदज्ञानमहीजसत्फलमिदं वन्द्यं जगन्मंगलम्
।।२०।।
(मन्दाक्रान्ता)
मोक्षे मोक्षे जयति सहजज्ञानमानन्दतानं
निर्व्याबाधं स्फु टितसहजावस्थमन्तर्मुखं च
लीनं स्वस्मिन्सहजविलसच्चिच्चमत्कारमात्रे
स्वस्य ज्योतिःप्रतिहततमोवृत्ति नित्याभिरामम्
।।२१।।
(अनुष्टुभ्)
सहजज्ञानसाम्राज्यसर्वस्वं शुद्धचिन्मयम्
ममात्मानमयं ज्ञात्वा निर्विकल्पो भवाम्यहम् ।।२२।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]जीव अधिकार[ ३१
[श्लोेकार्थ :] मोहको निर्मूल करनेसे, प्रशस्त-अप्रशस्त समस्त रागका विलय
करनेसे तथा द्वेषरूपी जलसे भरे हुए मनरूपी घड़ेका नाश करनेसे, पवित्र अनुत्तम,
निरुपधि और नित्य-उदित (सदा प्रकाशमान) ऐसी ज्ञानज्योति प्रगट होती है भेदोंके
ज्ञानरूपी वृक्षका यह सत्फल वंद्य है, जगतको मंगलरूप है २०
[श्लोेकार्थ :] आनन्दमें जिसका फै लाव है, जो अव्याबाध (बाधा रहित) है,
जिसकी सहज दशा विकसित हो गई है, जो अन्तर्मुख है, जो अपनेमेंसहज विलसते
(खेलते, परिणमते) चित्चमत्कारमात्रमेंलीन है, जिसने निज ज्योतिसे तमोवृत्तिको
(अन्धकारदशाको, अज्ञानपरिणतिको) नष्ट किया है और जो नित्य अभिराम (सदा
सुन्दर) है, ऐसा सहजज्ञान सम्पूर्ण मोक्षमें जयवन्त वर्तता है २१
[श्लोेकार्थ :] सहजज्ञानरूपी साम्राज्य जिसका सर्वस्व है ऐसा शुद्धचैतन्यमय
अपने आत्माको जानकर, मैं यह निर्विकल्प होऊँ २२
१-अनुत्तम = जिससे अन्य कोई उत्तम नहीं है ऐसी; सर्वश्रेष्ठ
२-निरुपधि = उपधि रहित; परिग्रह रहित; बाह्य सामग्री रहित; उपाधि रहित; छलकपट रहितसरल
३-सत्फल = सुन्दर फल; अच्छा फल; उत्तम फल; सच्चा फल