Niyamsar (Hindi).

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परमचैतन्यसामान्यस्वरूपस्य अकृत्रिमपरमस्वस्वरूपाविचलस्थितिसनाथशुद्धचारित्रस्य नित्यशुद्ध-
निरंजनबोधस्य निखिलदुरघवीरवैरिसेनावैजयन्तीविध्वंसकारणस्य तस्य खलु स्वरूप-
श्रद्धानमात्रमेव
अन्या कार्यद्रष्टिः दर्शनज्ञानावरणीयप्रमुखघातिकर्मक्षयेण जातैव अस्य खलु
क्षायिकजीवस्य सकलविमलकेवलावबोधबुद्धभुवनत्रयस्य स्वात्मोत्थपरमवीतरागसुखसुधा-
समुद्रस्य यथाख्याताभिधानकार्यशुद्धचारित्रस्य साद्यनिधनामूर्तातींद्रियस्वभावशुद्धसद्भूतव्यवहार-
नयात्मकस्य त्रैलोक्यभव्यजनताप्रत्यक्षवंदनायोग्यस्य तीर्थकरपरमदेवस्य केवलज्ञानवदियमपि
युगपल्लोकालोकव्यापिनी
कहानजैनशास्त्रमाला ]जीव अधिकार[ ३३
कारणसमयसारस्वरूप है, निरावरण जिसका स्वभाव है, जो निज स्वभावसत्तामात्र है, जो
परमचैतन्यसामान्यस्वरूप है, जो अकृत्रिम परम स्व-स्वरूपमें अविचलस्थितिमय
शुद्धचारित्रस्वरूप है, जो नित्य-शुद्ध-निरंजनज्ञानस्वरूप है और जो समस्त दुष्ट पापोंरूप वीर
शत्रुओंकी सेनाकी ध्वजाके नाशका कारण है ऐसे आत्माके सचमुच
स्वरूपश्रद्धानमात्र ही
है (अर्थात् कारणदृष्टि तो वास्तवमें शुद्धात्माकी स्वरूपश्रद्धामात्र ही है )
दूसरी कार्यदृष्टि दर्शनावरणीय-ज्ञानावरणीयादि घातिकर्मोंके क्षयसे उत्पन्न होती है
इस क्षायिक जीवकोजिसने सकलविमल (सर्वथा निर्मल) केवलज्ञान द्वारा तीन भुवनको
जाना है, निज आत्मासे उत्पन्न होनेवाले परम वीतराग सुखामृतका जो समुद्र है, जो यथाख्यात
नामक कार्यशुद्धचारित्रस्वरूप है, जो सादि-अनन्त अमूर्त अतीन्द्रियस्वभाववाले
शुद्धसद्भूतव्यवहारनयात्मक है, और जो त्रिलोकके भव्य जनोंको प्रत्यक्ष वन्दनायोग्य है, ऐसे
तीर्थंकरपरमदेवकोकेवलज्ञानकी भाँति यह (कार्यदृष्टि) भी युगपत् लोकालोकमें व्याप्त
होनेवाली है
ही सदा-पावनरूप निज स्वभाव कहा है चार विभावभावोंका आश्रय करनेसे परमपारिणामिकभावका
आश्रय नहीं होता परमपारिणामिकभावका आश्रय करनेसे ही सम्यक्त्वसे लेकर मोक्ष दशा तककी
दशाएँ प्राप्त होती हैं ]
स्वरूपश्रद्धान = स्वरूप-अपेक्षासे श्रद्धान [जिसप्रकार कारणस्वभावज्ञान अर्थात् सहजज्ञान स्वरूपप्रत्यक्ष
है, उसीप्रकार कारणस्वभावदृष्टि अर्थात् सहजदर्शन स्वरूपश्रद्धानमात्र ही है ]
तीर्थंकरपरमदेव शुद्धसद्भूतव्यवहारनयस्वरूप हैं, कि जो शुद्धसद्भूतव्यवहारनय सादि-अनन्त, अमूर्तिक
और अतीन्द्रियस्वभाववाला है