Niyamsar (Hindi). Gatha: 19.

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(मालिनी)
असति सति विभावे तस्य चिन्तास्ति नो नः
सततमनुभवामः शुद्धमात्मानमेकम्
हृदयकमलसंस्थं सर्वकर्मप्रमुक्तं
न खलु न खलु मुक्ति र्नान्यथास्त्यस्ति तस्मात
।।३४।।
(मालिनी)
भविनि भवगुणाः स्युः सिद्धजीवेऽपि नित्यं
निजपरमगुणाः स्युः सिद्धिसिद्धाः समस्ताः
व्यवहरणनयोऽयं निश्चयान्नैव सिद्धि-
र्न च भवति भवो वा निर्णयोऽयं बुधानाम्
।।३५।।
दव्वत्थिएण जीवा वदिरित्ता पुव्वभणिदपज्जाया
पज्जयणएण जीवा संजुत्ता होंति दुविहेहिं ।।9।।
द्रव्यार्थिकेन जीवा व्यतिरिक्ताः पूर्वभणितपर्यायात
पर्यायनयेन जीवाः संयुक्ता भवन्ति द्वाभ्याम् ।।9।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]जीव अधिकार[ ४५
[श्लोेकार्थ :] (हमारे आत्मस्वभावमें) विभाव असत् होनेसे उसकी हमें चिन्ता
नहीं है; हम तो हृदयकमलमें स्थित, सर्व कर्मसे विमुक्त, शुद्ध आत्माका एकका सतत
अनुभवन करते हैं, क्योंकि अन्य किसी प्रकारसे मुक्ति नहीं है, नहीं है, नहीं हि है
३४
[श्लोेकार्थ :] संसारीमें सांसारिक गुण होते हैं और सिद्ध जीवमें सदा समस्त
सिद्धिसिद्ध (मोक्षसे सिद्ध अर्थात् परिपूर्ण हुए) निज परमगुण होते हैंइसप्रकार
व्यवहारनय है निश्चयसे तो सिद्ध भी नहीं है और संसार भी नहीं है यह बुध पुरुषोंका
निर्णय है ३५
गाथा : १९ अन्वयार्थ :[द्रव्यार्थिकेन] द्रव्यार्थिक नयसे [जीवाः] जीव
है उक्त पर्ययशून्य आत्मा द्रव्यद्रष्टिसे सदा
है उक्त पर्यायों सहित पर्यायनयसे वह कहा ।।१९।।