Niyamsar (Hindi).

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कहानजैनशास्त्रमाला ]जीव अधिकार[ ४७
द्वाभ्याम् संयुक्ताः सर्वे जीवा इति सूत्रार्थो व्यर्थः निगमो विकल्पः, तत्र भवो नैगमः
च नैगमनयस्तावत् त्रिविधः, भूतनैगमः वर्तमाननैगमः भाविनैगमश्चेति अत्र
भूतनैगमनयापेक्षया भगवतां सिद्धानामपि व्यंजनपर्यायत्वमशुद्धत्वं च संभवति पूर्वकाले ते
भगवन्तः संसारिण इति व्यवहारात किं बहुना, सर्वे जीवा नयद्वयबलेन शुद्धाशुद्धा इत्यर्थः
तथा चोक्तं श्रीमदमृतचन्द्रसूरिभिः
(मालिनी)
‘‘उभयनयविरोधध्वंसिनि स्यात्पदांके
जिनवचसि रमन्ते ये स्वयं वान्तमोहाः
सपदि समयसारं ते परं ज्योतिरुच्चै-
रनवमनयपक्षाक्षुण्णमीक्षन्त एव
’’
तथा हि
विकल्प; उसमें हो वह नैगम वह नैगमनय तीन प्रकारका है; भूत नैगम, वर्तमान नैगम
और भावी नैगम यहाँ भूत नैगमनयकी अपेक्षासे भगवन्त सिद्धोंको भी व्यंजनपर्यायवानपना
और अशुद्धपना सम्भवित होता है, क्योंकि पूर्वकालमें वे भगवन्त संसारी थे ऐसा व्यवहार
है
बहु कथनसे क्या ? सर्व जीव दो नयोंके बलसे शुद्ध तथा अशुद्ध हैं ऐसा अर्थ है
इसीप्रकार (आचार्यदेव) श्रीमद्अमृतचन्द्रसूरिने (श्री समयसारकी आत्मख्याति
नामक टीकामें चौथे श्लोक द्वारा) कहा है कि :
‘‘[श्लोेकार्थ :] दोनों नयोंके विरोधको नष्ट करनेवाले, स्यात्पदसे अडिकत
जिनवचनमें जो पुरुष रमते हैं, वे स्वयमेव मोहका वमन करके, अनूतन (अनादि) और
कुनयके पक्षसे खण्डित न होनेवाली ऐसी उत्तम परमज्योतिकोसमयसारकोशीघ्र
देखते ही हैं ’’
और (इस जीव अधिकारकी अन्तिम गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार
जो भूतकालकी पर्यायको वर्तमानवत् संकल्पित करे (अथवा कहे), भविष्यकालकी पर्यायको
वर्तमानवत् संकल्पित करे (अथवा कहे), अथवा किंचित् निष्पन्नतायुक्त और किंचित् अनिष्पन्नतायुक्त
वर्तमान पर्यायको सर्वनिष्पन्नवत् संकल्पित करे (अथवा कहे), उस ज्ञानको (अथवा वचनको) नैगमनय
कहते हैं ।