स्वभावपुद्गलः परमाणुः, विभावपुद्गलः स्कन्धः । कार्यपरमाणुः कारणपरमाणुरिति स्वभाव-
पुद्गलो द्विधा भवति । स्कंधाः षट्प्रकाराः स्युः, पृथ्वीजलच्छायाचतुरक्षविषय-
कर्मप्रायोग्याप्रायोग्यभेदाः । तेषां भेदो वक्ष्यमाणसूत्रेषूच्यते विस्तरेणेति ।
(अनुष्टुभ्)
गलनादणुरित्युक्त : पूरणात्स्कन्धनामभाक् ।
विनानेन पदार्थेन लोकयात्रा न वर्तते ।।३७।।
अइथूलथूल थूलं थूलसुहुमं च सुहुमथूलं च ।
सुहुमं अइसुहुमं इदि धरादियं होदि छब्भेयं ।।२१।।
भूपव्वदमादीया भणिदा अइथूलथूलमिदि खंधा ।
थूला इदि विण्णेया सप्पीजलतेल्लमादीया ।।२२।।
५० ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
परमाणु वह स्वभावपुद्गल है और स्कन्ध वह विभावपुद्गल है । स्वभावपुद्गल
कार्यपरमाणु और कारणपरमाणु ऐसे दो प्रकारसे है । स्कन्धोंके छह प्रकार हैं : (१) पृथ्वी,
(२) जल, (३) छाया, (४) (चक्षुके अतिरिक्त) चार इन्द्रियोंके विषयभूत स्कन्ध,
(५) कर्मयोग्य स्कन्ध और (६) कर्मके अयोग्य स्कन्ध — ऐसे छह भेद हैं । स्कन्धोंके
भेद अब कहे जानेवाले सूत्रोंमें (अगली चार गाथाओंमें) विस्तारसे कहे जायेंगे ।
[अब, २०वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्री
पद्मप्रभमलधारिदेव श्लोक कहते हैं :]
[श्लोेकार्थ : — ] (पुद्गलपदार्थ) गलन द्वारा (अर्थात् भिन्न हो जानेसे) ‘परमाणु’
कहलाता है और पूरण द्वारा (अर्थात् संयुक्त होनेसे) ‘स्कन्ध’ नामको प्राप्त होता है । इस
पदार्थके बिना लोकयात्रा नहीं हो सकती ।३७।
अतिथूलथूल, थूल, थूलसूक्षम, सूक्ष्मथूल अरु सूक्ष्म ये ।
अतिसूक्ष्म — येहि धरादि पुद्गगलस्कन्धके छ विकल्प हैं ।।२१।।
भूपर्वतादिक स्कन्ध अतिथूलथूल जिनवरने कहा ।
घृत-तैल-जल इत्यादि इनको स्थूल पुद्गल जानना ।।२२।।