Niyamsar (Hindi). Gatha: 21-22.

< Previous Page   Next Page >


Page 50 of 388
PDF/HTML Page 77 of 415

 

५० ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
स्वभावपुद्गलः परमाणुः, विभावपुद्गलः स्कन्धः कार्यपरमाणुः कारणपरमाणुरिति स्वभाव-
पुद्गलो द्विधा भवति स्कंधाः षट्प्रकाराः स्युः, पृथ्वीजलच्छायाचतुरक्षविषय-
कर्मप्रायोग्याप्रायोग्यभेदाः तेषां भेदो वक्ष्यमाणसूत्रेषूच्यते विस्तरेणेति
(अनुष्टुभ्)
गलनादणुरित्युक्त : पूरणात्स्कन्धनामभाक्
विनानेन पदार्थेन लोकयात्रा न वर्तते ।।३७।।
अइथूलथूल थूलं थूलसुहुमं च सुहुमथूलं च
सुहुमं अइसुहुमं इदि धरादियं होदि छब्भेयं ।।२१।।
भूपव्वदमादीया भणिदा अइथूलथूलमिदि खंधा
थूला इदि विण्णेया सप्पीजलतेल्लमादीया ।।२२।।

परमाणु वह स्वभावपुद्गल है और स्कन्ध वह विभावपुद्गल है स्वभावपुद्गल कार्यपरमाणु और कारणपरमाणु ऐसे दो प्रकारसे है स्कन्धोंके छह प्रकार हैं : (१) पृथ्वी, (२) जल, (३) छाया, (४) (चक्षुके अतिरिक्त) चार इन्द्रियोंके विषयभूत स्कन्ध, (५) कर्मयोग्य स्कन्ध और (६) कर्मके अयोग्य स्कन्धऐसे छह भेद हैं स्कन्धोंके भेद अब कहे जानेवाले सूत्रोंमें (अगली चार गाथाओंमें) विस्तारसे कहे जायेंगे

[अब, २०वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेव श्लोक कहते हैं :]

[श्लोेकार्थ :] (पुद्गलपदार्थ) गलन द्वारा (अर्थात् भिन्न हो जानेसे) ‘परमाणु’ कहलाता है और पूरण द्वारा (अर्थात् संयुक्त होनेसे) ‘स्कन्ध’ नामको प्राप्त होता है इस पदार्थके बिना लोकयात्रा नहीं हो सकती ३७

अतिथूलथूल, थूल, थूलसूक्षम, सूक्ष्मथूल अरु सूक्ष्म ये
अतिसूक्ष्मयेहि धरादि पुद्गगलस्कन्धके छ विकल्प हैं ।।२१।।
भूपर्वतादिक स्कन्ध अतिथूलथूल जिनवरने कहा
घृत-तैल-जल इत्यादि इनको स्थूल पुद्गल जानना ।।२२।।