परमाणु वह स्वभावपुद्गल है और स्कन्ध वह विभावपुद्गल है । स्वभावपुद्गलकार्यपरमाणु और कारणपरमाणु ऐसे दो प्रकारसे है । स्कन्धोंके छह प्रकार हैं : (१) पृथ्वी,(२) जल, (३) छाया, (४) (चक्षुके अतिरिक्त) चार इन्द्रियोंके विषयभूत स्कन्ध, (५) कर्मयोग्य स्कन्ध और (६) कर्मके अयोग्य स्कन्ध — ऐसे छह भेद हैं । स्कन्धोंकेभेद अब कहे जानेवाले सूत्रोंमें (अगली चार गाथाओंमें) विस्तारसे कहे जायेंगे ।
[अब, २०वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्रीपद्मप्रभमलधारिदेव श्लोक कहते हैं :]
[श्लोेकार्थ : — ] (पुद्गलपदार्थ) गलन द्वारा (अर्थात् भिन्न हो जानेसे) ‘परमाणु’कहलाता है और पूरण द्वारा (अर्थात् संयुक्त होनेसे) ‘स्कन्ध’ नामको प्राप्त होता है । इसपदार्थके बिना लोकयात्रा नहीं हो सकती ।३७।
अतिथूलथूल, थूल,थूलसूक्षम, सूक्ष्मथूल अरु सूक्ष्म ये ।
अतिसूक्ष्म — येहि धरादि पुद्गगलस्कन्धके छ विकल्प हैं ।।२१।।