Niyamsar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 52 of 388
PDF/HTML Page 79 of 415

 

५२ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
सूक्ष्मा भवन्ति स्कन्धाः प्रायोग्याः कर्मवर्गणस्य पुनः
तद्विपरीताः स्कन्धाः अतिसूक्ष्मा इति प्ररूपयन्ति ।।२४।।
विभावपुद्गलस्वरूपाख्यानमेतत
अतिस्थूलस्थूला हि ते खलु पुद्गलाः सुमेरुकुम्भिनीप्रभृतयः घृततैलतक्रक्षीर-

जलप्रभृतिसमस्तद्रव्याणि हि स्थूलपुद्गलाश्च छायातपतमःप्रभृतयः स्थूलसूक्ष्मपुद्गलाः स्पर्शनरसनघ्राणश्रोत्रेन्द्रियाणां विषयाः सूक्ष्मस्थूलपुद्गलाः शब्दस्पर्शरसगन्धाः शुभाशुभ- परिणामद्वारेणागच्छतां शुभाशुभकर्मणां योग्याः सूक्ष्मपुद्गलाः एतेषां विपरीताः सूक्ष्म- सूक्ष्मपुद्गलाः कर्मणामप्रायोग्या इत्यर्थः अयं विभावपुद्गलक्रमः

[पुनः ] और [कर्मवर्गणस्य प्रायोग्याः ] कर्मवर्गणाके योग्य [स्कन्धाः ] स्कन्ध [सूक्ष्माः भवन्ति ] सूक्ष्म हैं; [तद्विपरीताः ] उनसे विपरीत (अर्थात् कर्मवर्गणाके अयोग्य) [स्कन्धाः ] स्कन्ध [अतिसूक्ष्माः इति ] अतिसूक्ष्म [प्ररूपयन्ति ] कहे जाते हैं

टीका :यह, विभावपुद्गलके स्वरूपका कथन है

सुमेरु, पृथ्वी आदि (घन पदार्थ) वास्तवमें अतिस्थूलस्थूल पुद्गल हैं घी, तेल, मट्ठा, दूध, जल आदि समस्त (प्रवाही) पदार्थ स्थूल पुद्गल हैं छाया, आतप, अन्धकारादि स्थूलसूक्ष्म पुद्गल हैं स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय तथा श्रोत्रेन्द्रियके विषयस्पर्श, रस, गन्ध और शब्दसूक्ष्मस्थूल पुद्गल हैं शुभाशुभ परिणाम द्वारा आनेवाले ऐसे शुभाशुभ कर्मोंके योग्य (स्कन्ध) वे सूक्ष्म पुद्गल हैं उनसे विपरीत अर्थात् कर्मोंके अयोग्य (स्कन्ध) वे सूक्ष्मसूक्ष्म पुद्गल हैं ऐसा (इन गाथाओंका) अर्थ है यह विभावपुद्गलका क्रम है

[भावार्थ:स्कन्ध छह प्रकारके हैं : (१) काष्ठपाषाणादिक जो स्कन्ध छेदन किये जाने पर स्वयमेव जुड़ नहीं सकते वे स्कन्ध अतिस्थूलस्थूल हैं (२) दूध, जल आदि जो स्कन्ध छेदन किये जाने पर पुनः स्वयमेव जुड़ जाते हैं वे स्कन्ध स्थूल हैं (३) धूप, छाया, चाँदनी, अन्धकार इत्यादि जो स्कन्ध स्थूल ज्ञात होने पर भी भेदे नहीं जा सकते या हस्तादिकसे ग्रहण नहीं किये जा सकते वे स्कन्ध स्थूलसूक्ष्म हैं (४) आँखसे न दिखनेवाले ऐसे जो चार इन्द्रियोंके विषयभूत स्कन्ध सूक्ष्म होने पर भी स्थूल ज्ञात होते हैं (स्पर्शनेन्द्रियसे स्पर्श किये जा सकते हैं, जीभसे आस्वादन किये जा सकते हैं, नाकसे सूंघे जा सकते हैं अथवा कानसे सुने जा सकते हैं ) वे स्कन्ध सूक्ष्मस्थूल हैं