जलप्रभृतिसमस्तद्रव्याणि हि स्थूलपुद्गलाश्च । छायातपतमःप्रभृतयः स्थूलसूक्ष्मपुद्गलाः । स्पर्शनरसनघ्राणश्रोत्रेन्द्रियाणां विषयाः सूक्ष्मस्थूलपुद्गलाः शब्दस्पर्शरसगन्धाः । शुभाशुभ- परिणामद्वारेणागच्छतां शुभाशुभकर्मणां योग्याः सूक्ष्मपुद्गलाः । एतेषां विपरीताः सूक्ष्म- सूक्ष्मपुद्गलाः कर्मणामप्रायोग्या इत्यर्थः । अयं विभावपुद्गलक्रमः ।
[पुनः ] और [कर्मवर्गणस्य प्रायोग्याः ] कर्मवर्गणाके योग्य [स्कन्धाः ] स्कन्ध [सूक्ष्माः भवन्ति ] सूक्ष्म हैं; [तद्विपरीताः ] उनसे विपरीत (अर्थात् कर्मवर्गणाके अयोग्य) [स्कन्धाः ] स्कन्ध [अतिसूक्ष्माः इति ] अतिसूक्ष्म [प्ररूपयन्ति ] कहे जाते हैं ।
सुमेरु, पृथ्वी आदि (घन पदार्थ) वास्तवमें अतिस्थूलस्थूल पुद्गल हैं । घी, तेल, मट्ठा, दूध, जल आदि समस्त (प्रवाही) पदार्थ स्थूल पुद्गल हैं । छाया, आतप, अन्धकारादि स्थूलसूक्ष्म पुद्गल हैं । स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय तथा श्रोत्रेन्द्रियके विषय — स्पर्श, रस, गन्ध और शब्द — सूक्ष्मस्थूल पुद्गल हैं । शुभाशुभ परिणाम द्वारा आनेवाले ऐसे शुभाशुभ कर्मोंके योग्य (स्कन्ध) वे सूक्ष्म पुद्गल हैं । उनसे विपरीत अर्थात् कर्मोंके अयोग्य (स्कन्ध) वे सूक्ष्मसूक्ष्म पुद्गल हैं । — ऐसा (इन गाथाओंका) अर्थ है । यह विभावपुद्गलका क्रम है ।
[भावार्थ: — स्कन्ध छह प्रकारके हैं : (१) काष्ठपाषाणादिक जो स्कन्ध छेदन किये जाने पर स्वयमेव जुड़ नहीं सकते वे स्कन्ध अतिस्थूलस्थूल हैं । (२) दूध, जल आदि जो स्कन्ध छेदन किये जाने पर पुनः स्वयमेव जुड़ जाते हैं वे स्कन्ध स्थूल हैं । (३) धूप, छाया, चाँदनी, अन्धकार इत्यादि जो स्कन्ध स्थूल ज्ञात होने पर भी भेदे नहीं जा सकते या हस्तादिकसे ग्रहण नहीं किये जा सकते वे स्कन्ध स्थूलसूक्ष्म हैं । (४) आँखसे न दिखनेवाले ऐसे जो चार इन्द्रियोंके विषयभूत स्कन्ध सूक्ष्म होने पर भी स्थूल ज्ञात होते हैं ( – स्पर्शनेन्द्रियसे स्पर्श किये जा सकते हैं, जीभसे आस्वादन किये जा सकते हैं, नाकसे सूंघे जा सकते हैं अथवा कानसे सुने जा सकते हैं ) वे स्कन्ध सूक्ष्मस्थूल हैं ।