Niyamsar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 53 of 388
PDF/HTML Page 80 of 415

 

कहानजैनशास्त्रमाला ]अजीव अधिकार[ ५३
तथा चोक्तं पंचास्तिकायसमये
‘‘पुढवी जलं च छाया चउरिंदियविसयकम्मपाओग्गा
क म्मातीदा एवं छब्भेया पोग्गला होंति ।।’’
उक्तं च मार्गप्रकाशे
(अनुष्टुभ्)
‘‘स्थूलस्थूलास्ततः स्थूलाः स्थूलसूक्ष्मास्ततः परे
सूक्ष्मस्थूलास्ततः सूक्ष्माः सूक्ष्मसूक्ष्मास्ततः परे ’’
तथा चोक्तं श्रीमदमृतचन्द्रसूरिभिः
(वसंततिलका)
‘‘अस्मिन्ननादिनि महत्यविवेकनाटये
वर्णादिमान् नटति पुद्गल एव नान्यः

(५) इन्द्रियज्ञानके अगोचर ऐसे जो कर्मवर्गणारूप स्कन्ध वे स्कन्ध सूक्ष्म हैं (६) कर्मवर्गणासे नीचेके (कर्मवर्गणातीत) जो अत्यन्तसूक्ष्म द्वि-अणुकपर्यंत स्कन्ध वे स्कन्ध सूक्ष्मसूक्ष्म हैं ]

इसीप्रकार (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत) श्री पंचास्तिकायसमयमें (गाथा द्वारा) कहा है कि :

‘‘[गाथार्थः] पृथ्वी, जल, छाया, चार इन्द्रियोंके विषयभूत, कर्मके योग्य और कर्मातीतइसप्रकार पुद्गल (स्कन्ध) छह प्रकारके हैं ’’

और मार्गप्रकाशमें (श्लोक द्वारा) कहा है कि :
‘‘[श्लोेकार्थ :] स्थूलस्थूल, पश्चात् स्थूल, तत्पश्चात् स्थूलसूक्ष्म, पश्चात्

सूक्ष्मस्थूल, पश्चात् सूक्ष्म और तत्पश्चात् सूक्ष्मसूक्ष्म (इसप्रकार स्कन्ध छह प्रकारके हैं ) ’’

इसप्रकार (आचार्यदेव) श्रीमद् अमृतचन्द्रसूरिने (श्री समयसारकी आत्मख्याति नामक टीकामें ४४वें श्लोक द्वारा) कहा है कि :

‘‘[श्लोेकार्थ :] इस अनादिकालीन महा अविवेकके नाटकमें अथवा नाचमें वर्णादिमान् पुद्गल ही नाचता है, अन्य कोई नहीं; (अभेद ज्ञानमें पुद्गल ही अनेक

देखो, श्री परमश्रुतप्रभावकमण्डल द्वारा प्रकाशित पंचास्तिकाय, द्वितीय संस्करण, पृष्ठ१३०