वर्णादिमान् नटति पुद्गल एव नान्यः ।
(५) इन्द्रियज्ञानके अगोचर ऐसे जो कर्मवर्गणारूप स्कन्ध वे स्कन्ध सूक्ष्म हैं । (६) कर्मवर्गणासे नीचेके (कर्मवर्गणातीत) जो अत्यन्तसूक्ष्म द्वि-अणुकपर्यंत स्कन्ध वे स्कन्ध सूक्ष्मसूक्ष्म हैं । ]
इसीप्रकार (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत) श्री पंचास्तिकायसमयमें (❃गाथा द्वारा) कहा है कि : —
‘‘[गाथार्थः — ] पृथ्वी, जल, छाया, चार इन्द्रियोंके विषयभूत, कर्मके योग्य और कर्मातीत — इसप्रकार पुद्गल (स्कन्ध) छह प्रकारके हैं ।’’
सूक्ष्मस्थूल, पश्चात् सूक्ष्म और तत्पश्चात् सूक्ष्मसूक्ष्म ( – इसप्रकार स्कन्ध छह प्रकारके हैं ) ।’’
इसप्रकार (आचार्यदेव) श्रीमद् अमृतचन्द्रसूरिने (श्री समयसारकी आत्मख्याति नामक टीकामें ४४वें श्लोक द्वारा) कहा है कि : —
‘‘[श्लोेकार्थ : — ] इस अनादिकालीन महा अविवेकके नाटकमें अथवा नाचमें वर्णादिमान् पुद्गल ही नाचता है, अन्य कोई नहीं; (अभेद ज्ञानमें पुद्गल ही अनेक