Niyamsar (Hindi). Gatha: 28.

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अण्णणिरावेक्खो जो परिणामो सो सहावपज्जाओ
खंधसरूवेण पुणो परिणामो सो विहावपज्जाओ ।।२८।।
अन्यनिरपेक्षो यः परिणामः स स्वभावपर्यायः
स्कन्धस्वरूपेण पुनः परिणामः स विभावपर्यायः ।।२८।।
पुद्गलपर्यायस्वरूपाख्यानमेतत
परमाणुपर्यायः पुद्गलस्य शुद्धपर्यायः परमपारिणामिकभावलक्षणः वस्तुगतषट्प्रकार-
हानिवृद्धिरूपः अतिसूक्ष्मः अर्थपर्यायात्मकः सादिसनिधनोऽपि परद्रव्यनिरपेक्षत्वाच्छुद्धसद्भूत-
व्यवहारनयात्मकः
अथवा हि एकस्मिन् समयेऽप्युत्पादव्ययध्रौव्यात्मकत्वात्सूक्ष्मऋजुसूत्र-
नयात्मकः स्कन्धपर्यायः स्वजातीयबन्धलक्षणलक्षितत्वादशुद्ध इति
६० ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
गाथा : २८ अन्वयार्थ :[अन्यनिरपेक्षः ] अन्यनिरपेक्ष (अन्यकी अपेक्षा
रहित) [यः परिणामः ] जो परिणाम [सः ] वह [स्वभावपर्यायः ] स्वभावपर्याय है
[पुनः ] और [स्कन्धस्वरूपेण परिणामः] स्कन्धरूप परिणाम [सः ] वह
[विभावपर्यायः ] विभावपर्याय है
टीका :यह, पुद्गलपर्यायके स्वरूपका कथन है
परमाणुपर्याय पुद्गलकी शुद्धपर्याय हैजो कि परमपारिणामिकभावस्वरूप है,
वस्तुमें होनेवाली छह प्रकारकी हानिवृद्धिरूप है, अतिसूक्ष्म है, अर्थपर्यायात्मक है और
सादि-सान्त होने पर भी परद्रव्यसे निरपेक्ष होनेके कारण शुद्धसद्भूतव्यवहारनयात्मक है
अथवा एक समयमें भी उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक होनेसे सूक्ष्मऋृजुसूत्रनयात्मक है
स्कन्धपर्याय स्वजातीय बन्धरूप लक्षणसे लक्षित होनेके कारण अशुद्ध है
[अब टीकाकार मुनिराज २८वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए श्लोक
कहते हैं :]
पर्याय परनिरपेक्ष जो उसको स्वभाविक जानिये
जो स्कन्धपरिणति है उसे वैभाविकी पहिचानिये ।।२८।।