सति न च परमाणोः स्कन्धपर्यायशब्दः ।
न च भवति यथेयं सोऽपि नित्यं तथैव ।।४२।।
व्यवहारनयेन विभावपर्यायात्मनां स्कन्धपुद्गलानां पुद्गलत्वमुपचारतः सिद्धं भवति ।
[श्लोेकार्थ : — ] (परमाणु) परपरिणतिसे दूर शुद्धपर्यायरूप होनेसे परमाणुको स्कन्धपर्यायरूप शब्द नहीं होता; जिसप्रकार भगवान जिननाथमें कामदेवकी वार्ता नहीं होती, उसीप्रकार परमाणु भी सदा अशब्द ही होता है (अर्थात् परमाणुको भी कभी शब्द नहीं होता) ।४२।
गाथा : २९ अन्वयार्थ : — [निश्चयेन ] निश्चयसे [परमाणुः ] परमाणुको [पुद्गल- द्रव्यम् ] ‘पुद्गलद्रव्य’ [उच्यते ] कहा जाता है [पुनः ] और [इतरेण ] व्यवहारसे [स्कन्धस्य ] स्कन्धको [पुद्गलद्रव्यम् इति व्यपदेशः ] ‘पुद्गलद्रव्य’ ऐसा नाम [भवति ] होता है ।
शुद्धनिश्चयनयसे स्वभावशुद्धपर्यायात्मक परमाणुको ही ‘पुद्गलद्रव्य’ ऐसा नाम होता है । अन्य ऐसे व्यवहारनयसे विभावपर्यायात्मक स्कन्धपुद्गलोंको पुद्गलपना उपचार द्वारा