Niyamsar (Hindi). Gatha: 29.

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(मालिनी)
परपरिणतिदूरे शुद्धपर्यायरूपे
सति न च परमाणोः स्कन्धपर्यायशब्दः
भगवति जिननाथे पंचबाणस्य वार्ता
न च भवति यथेयं सोऽपि नित्यं तथैव
।।४२।।
पोग्गलदव्वं उच्चइ परमाणू णिच्छएण इदरेण
पोग्गलदव्वो त्ति पुणो ववदेसो होदि खंधस्स ।।9।।
पुद्गलद्रव्यमुच्यते परमाणुर्निश्चयेन इतरेण
पुद्गलद्रव्यमिति पुनः व्यपदेशो भवति स्कन्धस्य ।।9।।
पुद्गलद्रव्यव्याख्यानोपसंहारोऽयम्
स्वभावशुद्धपर्यायात्मकस्य परमाणोरेव पुद्गलद्रव्यव्यपदेशः शुद्धनिश्चयेन इतरेण
व्यवहारनयेन विभावपर्यायात्मनां स्कन्धपुद्गलानां पुद्गलत्वमुपचारतः सिद्धं भवति
कहानजैनशास्त्रमाला ]अजीव अधिकार[ ६१
[श्लोेकार्थ :] (परमाणु) परपरिणतिसे दूर शुद्धपर्यायरूप होनेसे परमाणुको
स्कन्धपर्यायरूप शब्द नहीं होता; जिसप्रकार भगवान जिननाथमें कामदेवकी वार्ता नहीं होती,
उसीप्रकार परमाणु भी सदा अशब्द ही होता है (अर्थात् परमाणुको भी कभी शब्द नहीं
होता)
४२
गाथा : २९ अन्वयार्थ :[निश्चयेन ] निश्चयसे [परमाणुः ] परमाणुको [पुद्गल-
द्रव्यम् ] ‘पुद्गलद्रव्य’ [उच्यते ] कहा जाता है [पुनः ] और [इतरेण ] व्यवहारसे
[स्कन्धस्य ] स्कन्धको [पुद्गलद्रव्यम् इति व्यपदेशः ] ‘पुद्गलद्रव्य’ ऐसा नाम [भवति ]
होता है
टीका :यह, पुद्गलद्रव्यके कथनका उपसंहार है
शुद्धनिश्चयनयसे स्वभावशुद्धपर्यायात्मक परमाणुको ही ‘पुद्गलद्रव्य’ ऐसा नाम होता
है अन्य ऐसे व्यवहारनयसे विभावपर्यायात्मक स्कन्धपुद्गलोंको पुद्गलपना उपचार द्वारा
परमाणु ‘पुद्गलद्रव्य’ है यह कथन निश्चयनय करे
व्यवहारनयकी रीति है, वह स्कन्धको ‘पुद्गल’ कहे ।।२९।।