Niyamsar (Hindi).

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६८ ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
मुख्यकालस्वरूपाख्यानमेतत
जीवराशेः पुद्गलराशेः सकाशादनन्तगुणाः के ते ? समयाः कालाणवः लोका-

काशप्रदेशेषु पृथक् पृथक् तिष्ठन्ति, स कालः परमार्थ इति

तथा चोक्तं प्रवचनसारे
‘‘समओ दु अप्पदेसो पदेसमेत्तस्स दव्वजादस्स
वदिवददो सो वट्टदि पदेसमागासदव्वस्स ।।’’
अस्यापि समयशब्देन मुख्यकालाणुस्वरूपमुक्त म्
अन्यच्च
‘‘लोयायासपदेसे एक्केक्के जे ट्ठिया हु एक्केक्का
रयणाणं रासी इव ते कालाणू असंखदव्वाणि ।।’’
उक्तं च मार्गप्रकाशे
टीका :यह, मुख्य कालके स्वरूपका कथन है

जीवराशिसे और पुद्गलराशिसे अनन्तगुने हैं कौन ? समय । कालाणु लोकाकाशके प्रदेशोंमें पृथक् पृथक् स्थित हैं, वह काल परमार्थ है

उसीप्रकार (श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत) श्री प्रवचनसारमें (१३८वीं गाथा द्वारा) कहा है कि :

‘‘[गाथार्थः] काल तो अप्रदेशी है प्रदेशमात्र पुद्गल - परमाणु आकाशद्रव्यके प्रदेशको मन्द गतिसे लाँघता हो तब वह वर्तता है अर्थात् निमित्तभूतरूपसे परिणमित होता है ’’

इसमें (इस प्रवचनसारकी गाथामें) भी ‘समय’ शब्दसे मुख्यकालाणुका स्वरूप कहा है

और अन्यत्र (आचार्यवर श्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तिदेवविरचित बृहद्द्रद्रव्यसङ्ग्रह में २२वीं गाथा द्वारा) कहा है कि :

[गाथार्थः] लोकाकाशके एक - एक प्रदेशमें जो एकएक कालाणु रत्नोंकी राशिकी भाँति वास्तवमें स्थित हैं, वे कालाणु असंख्य द्रव्य हैं ।

और मार्गप्रकाशमें भी (श्लोक द्वारा) कहा है कि :