Niyamsar (Hindi). Gatha: 33.

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(अनुष्टुभ्)
‘‘कालाभावे न भावानां परिणामस्तदंतरात
न द्रव्यं नापि पर्यायः सर्वाभावः प्रसज्यते ।।’’
तथा हि
(अनुष्टुभ्)
वर्तनाहेतुरेषः स्यात् कुम्भकृच्चक्रमेव तत
पंचानामस्तिकायानां नान्यथा वर्तना भवेत।।४८।।
(अनुष्टुभ्)
प्रतीतिगोचराः सर्वे जीवपुद्गलराशयः
धर्माधर्मनभः कालाः सिद्धाः सिद्धान्तपद्धतेः ।।9।।
जीवादीदव्वाणं परिवट्टणकारणं हवे कालो
धम्मादिचउण्हं णं सहावगुणपज्जया होंति ।।३३।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]अजीव अधिकार[ ६९
‘‘[श्लोेकार्थ :] कालके अभावमें, पदार्थोंका परिणमन नहीं होगा; और
परिणमन न हो तो, द्रव्य भी न होगा तथा पर्याय भी न होगी; इसप्रकार सर्वके अभावका
(शून्यका) प्रसंग आयेगा
’’
और (३२वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज दो श्लोक
कहते हैं ) :
[श्लोेकार्थ :] कुम्हारके चक्रकी भाँति (अर्थात् जिसप्रकार घड़ा बननेमें
कुम्हारका चाक निमित्त है उसीप्रकार), यह परमार्थकाल (पाँच अस्तिकायोंकी) वर्तनाका
निमित्त है । उसके बिना, पाँच अस्तिकायोंको वर्तना (
परिणमन) नहीं हो सकती ४८
[श्लोेकार्थ :] सिद्धान्तपद्धतिसे (शास्त्रपरम्परासे) सिद्ध ऐसे जीवराशि,
पुद्गलराशि, धर्म, अधर्म, आकाश और काल सभी प्रतीतिगोचर हैं (अर्थात् छहों द्रव्योंकी
प्रतीति हो सकती है )
४९
रे जीव-पुद्गल आदिका परिणमनकारण काल है
धर्मादि चार स्वभावगुण-पर्यायवन्त त्रिकाल हैं ।।३३।।