Niyamsar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 70 of 388
PDF/HTML Page 97 of 415

 

background image
जीवादिद्रव्याणां परिवर्तनकारणं भवेत्कालः
धर्मादिचतुर्णां स्वभावगुणपर्याया भवन्ति ।।३३।।
कालादिशुद्धामूर्ताचेतनद्रव्याणां स्वभावगुणपर्यायाख्यानमेतत
इह हि मुख्यकालद्रव्यं जीवपुद्गलधर्माधर्माकाशानां पर्यायपरिणतिहेतुत्वात् परि-
वर्तनलिङ्गमित्युक्त म् अथ धर्माधर्माकाशकालानां स्वजातीयविजातीयबंधसम्बन्धाभावात
विभावगुणपर्यायाः न भवंति, अपि तु स्वभावगुणपर्याया भवंतीत्यर्थः ते गुणपर्यायाः पूर्वं
प्रतिपादिताः, अत एवात्र संक्षेपतः सूचिता इति
(मालिनी)
इति विरचितमुच्चैर्द्रव्यषट्कस्य भास्वद्
विवरणमतिरम्यं भव्यकर्णामृतं यत
तदिह जिनमुनीनां दत्तचित्तप्रमोदं
भवतु भवविमुक्त्यै सर्वदा भव्यजन्तोः
।।५०।।
७० ]
नियमसार
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
गाथा : ३३ अन्वयार्थ :[जीवादिद्रव्याणाम् ] जीवादि द्रव्योंको [परिवर्तन-
कारणम् ] परिवर्तनका कारण (वर्तनाका निमित्त) [कालः भवेत् ] काल है [धर्मादि-
चतुर्णां ] धर्मादि चार द्रव्योंको [स्वभावगुणपर्यायाः ] स्वभावगुणपर्यायें [भवन्ति ] होते हैं
टीका :यह, कालादि शुद्ध अमूर्त अचेतन द्रव्योंके स्वभावगुणपर्यायोंका कथन
है
मुख्यकालद्रव्य, जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाशकी (पाँच
अस्तिकायोंकी) पर्यायपरिणतिका हेतु होनेसे उसका लिंग परिवर्तन है (अर्थात् कालद्रव्यका
लक्षण वर्तनाहेतुत्व है) ऐसा यहाँ कहा है
अब (दूसरी बात यह कि), धर्म, अधर्म, आकाश और कालको स्वजातीय या
विजातीय बन्धका सम्बन्ध न होनेसे उन्हें विभावगुणपर्यायें नहीं होतीं, परन्तु स्वभावगुणपर्यायें
होतीं हैं
ऐसा अर्थ है उन स्वभावगुणपर्यायोंका पहले प्रतिपादन किया गया है इसीलिये
यहाँ संक्षेपसे सूचन किया गया है
[अब ३३ वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक कहते हैं :]
[श्लोेकार्थ :] इसप्रकार भव्योंके कर्णोंको अमृत ऐसा जो छह द्रव्योंका अति