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रागान्धो मदनोदयादनुचितं किं किं न कुर्याज्जनः
शृङ्गारं प्रविधाय काव्यमसकृल्लोकस्य कश्चित्कविः
अर्थात् उपदेश विना ज ते स्त्रीनी साथे अनेक प्रकारनी निन्दनीय चेष्टाओ करे
छे. वळी हेय
देवः सोऽपि गृही नरः परधनस्त्रीनिस्पृहः सर्वदा
देवानामपि देव एव स मुनिः केनात्र नो मन्यते
नथी ते गृहस्थ मनुष्य (होवा छतां) पण देव (प्रशंसनीय) छे. वळी जेमनी पासे
सर्वथा न तो स्त्री छे अने न धन पण छे तथा जे रत्नत्रयथी विभूषित छे ते मुनि
तो देवोना पण देव (देवोथी पण पूज्य) छे. तेमने भला अहीं कोण मानतुं नथी?
अर्थात् तेमनी बधा ज पूजा करे छे. १८.
लोकास्तत्र सुखं पराश्रिततया तद्दुःखमेव ध्रुवम्
त्तत्त्वैक
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छे ते वास्तवमां परने आधीन होवाथी दुःख ज छे. तेथी विवेकी जनो परिणामे
अहितकारक अने प्रमाणमां अल्प ते विषयजन्य सुख छोडीने तत्त्वदर्शीओना ते
अनुपम सुखनो स्वीकार करे छे जे आत्माधीन, नित्य, आत्मिक (स्वाधीन) अने
पापरहित छे. १९.
स्त्रीणां ये सुचिरं वसन्ति विलसत्तारुण्यपुण्यश्रियाम्
स्थानभूत पुण्ययुक्त होय छे. अर्थात् जेमने उत्तम स्त्रीओ चाहे छे ते पुण्यात्मा पुरुष
छे. परंतु अभ्यंतर नेत्रथी ज्ञानमय ज्योतिने शरीरथी भिन्न देखनार जे साधुओना
हृदयमां ते स्त्रीओ कदी पण निवास करती नथी ते पुण्यशाळी मुनिओने ते पूर्वोक्त
(स्त्रीओना हृदयमां रहेनार) पुण्यात्मा पुरुषो पण नमस्कार करे छे. २०.
ज्ञातप्रान्तदिनं जराहतमतिः प्रायो नरत्वं भवे
सौख्यार्थीति विचिन्त्य चेतसि तपः कुर्यान्नरो निर्मलम्
अल्पज्ञताने कारणे जाणी शकातो नथी, तथा जेमां वृद्धावस्थाने कारणे बुद्धि प्रायः
कुंठित थई जाय छे; ते मनुष्य पर्यायमां ज तप करी शकाय छे अने मोक्षपदनी
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विचार करीने मोक्षसुखाभिलाषी मनुष्ये आ दुर्लभ मनुष्य पर्यायमां निर्मळ तप करवुं
जोईए. २१.
सद्वृत्तौषधविंशतेरुचितवागर्थाम्भसा वर्तिता
श्चेतश्चक्षुरनङ्गरोगशमनी वर्तिः सदा सेव्यताम्
छे, श्रेष्ठ छे, योग्य शब्द अने अर्थरूप जळथी जेनुं उद्वर्तन करवामां आव्युं छे तथा
जे चित्तरूप चक्षुना कामरूप रोगने शांत करे छे, तेनुं सेवन तपोवृद्ध साधुओए
परलोकदर्शन माटे निरंतर करवुं जोईए.
अंजनशलाका) नी उपमा आपी छे. अभिप्राय तेनो ए छे के जेम उत्तम वैद्य द्वारा बतावायेल
श्रेष्ठ आंजण सळी द्वारा आंखोमां आंजतां मनुष्यनी आंखोनो रोग (फूलुं वगेरे) दूर थई जाय
छे अने पछी ते बीजा लोकोने स्पष्ट जोवा लागे छे. तेवी ज रीते जे भव्य जीव पद्मनन्दि मुनि
द्वारा उत्तमोत्तम शब्दो अने अर्थनो आश्रय लईने रचायेल आ ब्रह्मचर्य प्रकरणनुं मनन करे छे
तेमना चित्तनो कामरोग (विषय वांछा) नष्ट थई जाय छे अने त्यारे ते मुनिव्रत धारण करीने
परलोक (बीजो भव) जोवामां समर्थ थई जाय छे. तात्पर्य ए के आम करवाथी दुर्गतिनुं दुःख
नष्ट थईने तेमने कां तो मोक्षनी प्राप्ति थई जाय छे अथवा तो बीजा भवमां देवादिनी उत्तम
पर्याय प्राप्त थाय छे. २२.
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प्राणीओना विषयमां वात्सल्यभाव धारण करो छो तथा निर्मळ गुणोरूप रत्नोनां
स्थान छो. आप जयवंत हो. १.
हे ॠषभ जिनेन्द्र! पुण्यात्मा जीव आपना दर्शन करे छे, स्तुति करे छे, जप करे
छे अने ध्यान पण करे छे. २.
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दर्शन थतां केटलो आनंद प्राप्त थाय, ए अमे जाणतां नथी. ३.
समान प्रकट करे छे जे कुवामां रहेवा छतां पण समुद्रना विस्तारादि बतावे छे.
समस्त द्रव्यो अने तेमना अनंत गुण तथा पर्यायो युगपत् प्रतिभासित थई रह्या छे. ४.
थाय छे. ५.
थाय छे के ते वखते सर्वार्थसिद्धि पण एवी देखवामां आवी के जाणे तेनुं अनिष्ट
ज थई गयुं होय.
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बाबतमां अहीं एवी उत्प्रेक्षा करवामां आवी छे के भगवान् ॠषभ जिनेन्द्र च्युत थतां ते
सर्वार्थसिद्धि जाणे विधवा ज थई गई हती तेथी ते वखते ते सौभाग्यश्री विनानी देखाई. ६.
स्त्रीओमां तेमनी समक्ष तेमने पट्ट बांधवामां आव्यो हतो अर्थात् समस्त पुत्रवती
स्त्रीओनी वच्चे तीर्थंकर जेवा पुत्ररत्नने जन्म आपनार एक ते ज मरूदेवीने
पुत्रवती तरीके प्रसिद्ध करवामां आवी हती. ८.
अधिकता (हजारनी संख्या) ने सफळ समजवा लाग्यां.
हती. इन्द्रे ज्यारे आ नेत्रोथी प्रभुना दर्शन कर्या त्यारे तेमणे तेने सफळ मान्या. आ सुयोग अन्य
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तेओ ज्यारे त्रिलोकीनाथना दर्शन करे छे त्यारे तेमने वच्चे वच्चे पलक बीडाई जवाथी एकाग्रता
पण रहेती नथी. तेओ ते देवोनी जेम घणा समय सुधी एकटक द्रष्टिथी भगवानना दर्शन करी
शकता नथी. ९.
एवी रीते संपन्न थयो के जेथी आकाश ते देवो अने जळथी भराई गयुं. ११.
जोवामां आवे छे. १२.
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मात्र आपना द्वारा संपन्न (प्रदर्शित) करवामां आवी हती.
त्रीजा काळनो अंत आववामां पल्यनो आठमो भाग बाकी हतो त्यारे ते कल्पवृक्ष धीरे धीरे
नष्ट थई गया हता. ते वखते भगवान् आदि जिनेन्द्रे तेमने कर्मभूमिने योग्य असि--मसि
आदि आजीविकाना साधनोनुं शिक्षण आप्युं हतुं. जेम के श्री समन्तभद्राचार्य स्वामीए कह्युं
पण छे
शिक्षण आप्युं हतुं ते ज ॠषभ जिनेन्द्र पछी वस्तुस्वरूप जाणीने संसार, शरीर अने
भोगोथी विरक्त थतां थका आश्चर्यजनक अभ्युदयने प्राप्त थया अने सर्व विद्वानोमां अग्रेसर
थई गया. बृ. स्व. स्तो. २. आ रीते जे प्रजाजन भोगभूमिना समयमां अनेक कल्पवृक्षोथी
आजीविका सम्पन्न करता हता तेमणे कर्मभूमिना प्रारंभमां एकमात्र उक्त ॠषभ जिनेन्द्रथी
ज ते आजीविका सम्पन्न करी हती. तेओ ॠषभ जिनेन्द्र पासेथी असि, मसि अने कृषि
आदि कर्मोनुं शिक्षण मेळवीने आनंदपूर्वक आजीविका मेळववा लाग्या हता. १३.
धान्यांकुरोना ब्हाने रोमांच केवी रीते धारण करी शकत? १४.
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लीधी हती.
अप्सराओ साथे त्यां आव्या. तेणे भक्तिवशे त्यां अप्सराओनुं नृत्य शरू कराव्युं. तेणे भगवानने
राज्यभोगथी विरक्त करवानी इच्छाथी आ कार्यमां एवा पात्रनी (नीलांजनानी) निमणुंक करी के
जेनुं आयुष्य तरत ज पूर्ण थवानुं हतुं. ते प्रमाणे नीलांजना रस, भाव अने लय साथे नृत्य करी
रही हती के एटलामां तेनुं आयुष्य समाप्त थई गयुं. अने ते देखतां देखतां क्षणवारमां अद्रश्य
थई गई. जोके इन्द्रे रसभंगना भयथी त्यां बीजी तेवी ज अप्सरा तत्काळ खडी करी दीधी हती,
छतां पण भगवान ॠषभ जिनेन्द्र एनाथी अजाण न रह्या. आथी तेमना हृदयमां घणो वैराग्य
थयो. (आ. पु. १७, १
करी रही छे. १६.
स्तंभ ज होय! १७.
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बळनार शरीरनो धूमाडो ज होय! १८.
अलोक प्रतिबिंबित थवा लाग्या हता. १९.
भयथी ज जाणे मरेला समान (अनुभागथी क्षीण) थई गया हता. २०.
अभ्यंतर अने बाह्य लक्ष्मी द्वारा सर्व योगीओने जीती लीधा हता. तेथी तेओ जाणे ते बधा
योगीओनी उपर स्थित हता. २१.
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व्याप्त कमलिनी सूर्यना पाद (किरणो) ने पामीने महिमा प्राप्त करे छे. २२.
समान सुशोभित थाव छो, तो पण आपमां ते चन्द्रमानी अपेक्षाए विशेषता छे
रीते चन्द्रमा निर्दोष नथी
सहित ज छे. आप जडता (अज्ञानता) रहित होवाने कारणे अजड छो परंतु चन्द्रमा
अजड नथी, पण जड छे
परंतु आपनी समीपमां स्थित वृक्ष पण अशोक थई जाय छे.
जो के नामथी ज ‘अशोक’ प्रसिद्ध छे, छतां पण तेओ पोताना शब्दचातुर्यथी
एम व्यक्त करे छे के जो जिनेन्द्र भगवाननी केवळ समीपता ज पामीने ते स्थावर
वृक्ष पण अशोक (शोक रहित) थई जाय छे तो भला जे विवेकी जीव तेमनी
समीपमां रहीने तेमने भक्तिपूर्वक नमस्कार आदि करे छे तेओ शोक रहित केम
न थाय? अवश्य ज तेओ शोक रहित थईने अनुपम सुख प्राप्त करशे. २४.
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छत्र ते मोतीओना ब्हाने अमृतबिन्दुओनी ज वर्षा करी रह्या होय. २५.
किरणोथी करवामां आव्या होय तेवा लागता हता. २६.
पुष्पमय बाणो छोडी रह्या छे.
अविवेकी प्राणीओने जीतीने तेमने विषयासक्त कर्या करे छे. मूळमां अहीं भगवान ॠषभजिनेन्द्र
उपर जे देवोद्वारा पुष्पोनी वर्षा करवामां आवी रही हती तेनी उपर आ उत्प्रेक्षा करवामां आवी
छे के ते पुष्पवर्षा नथी पण ज्यारे भगवानने पोताने वश करवा माटे ते कामदेवे तेमनी उपर
पोताना पांचे बाण चलाव्या अने छतां पण तेओ तेने वश न थया त्यारे तेणे जाणे तेमना उपर
एक साथे घणा बाणो छोडवा ज शरू कर्या हता. २७.
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ज ज्ञानी परमात्मा छे, बीजा कोई परमात्मा नथी; तेथी एक जिनेन्द्रदेव सिवाय
तमे बीजाओनो उपदेश न सांभळो. २८.
(अज्ञानता) आ बन्नेने दूर करनार प्रभामंडळ एक आपनुं ज छे. २९.
सिवाय बीजा कोईनी वाणी ते संसाररूप विषने नष्ट करी शकती नथी.
होय छे. तेमां एक आ विशेषता होय छे के जेथी श्रोतागणने एवुं ज लागे छे के भगवान
आपणी भाषामां ज उपदेश आपी रह्या छे. क्यांक एवो पण उल्लेख मळे छे के ते दिव्यध्वनि
होय छे तो निरक्षर ज, पण तेने मागधदेव अर्धमागधी भाषामां परिणमावे छे. ते दिव्यध्वनि
स्वभावथी त्रणे संध्याकाळे नव मुहूर्त सुधी ज खरे छे. परंतु गणधर, इन्द्र अने चक्रवर्ती आदिना
प्रश्न अनुसार कोई वार ते अन्य समयमां पण खरे छे. ते एक योजन सुधी संभळाय छे.
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प्रकारनो संदेह आदि करी शकातो नथी. कारण ए छे के वचनमां असत्यपणुं कां तो कषायवश
जोवामां आवे छे अथवा तो अल्पज्ञताने कारणे, अने ते जिनेन्द्र भगवानमां रह्या नथी. माटे
तेमनी वाणीने अहीं अमृत समान संसार विषनाशक बताववामां आवी छे. ३०.
कारण थाय छे.
जिनवाणी पामीने (सांभळीने) ते प्रमाणे मोक्षमार्गमां प्रवृत्त थाय छे तेमने अवश्य ज तेनाथी
अनुपम फळ (मोक्षसुख) प्राप्त थाय छे. ३१.
छे, तेवी ज रीते जडौघ अर्थात् अज्ञान समूहने अधःकृत (तिरस्कृत) करनारी आपनी
वाणीरूप नौकानो आश्रय लईने भव्य जीव पण अनायासे ज अनंत संसाररूप
समुद्रने पार थई जाय छे, ए स्पष्ट छे. ३२.
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निर्मळ नेत्रोवाळा अन्य मनुष्य द्वारा देखवामां आवेला एवा आकाशमां संचार करतां
पक्षीओनी गणतरी (संख्या)मां विवाद करे छे. ३४.
छे! कांई पण नहि. ३५.
शके? अर्थात् आपना गुणोनुं कीर्तन ज्यां बृहस्पति आदि पण करी शक्या नथी तो
पछी बीजो क्यो एवो कवि छे जे आपना ते गुणोनुं पूर्णपणे कीर्तन करी शके? ३६.
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निर्बाधपणे मोक्षमां जाय छे.
पोताना दिव्य उपदेश द्वारा जे मोक्षमार्गने मोहरूप चोरथी रहित करी दीधो हतो तेना उपर
चालीने साधु पुरुषो अत्यारे पण सम्यग्दर्शनादिरूप अनुपम रत्नो साथे निर्विघ्नपणे इच्छित
स्थान (मोक्ष) प्राप्त करे छे. ३७.
जिनदीक्षानो स्वीकार कर्यो हतो. ३८.
शके? अर्थात् पामी शके नहि.
सदुपदेशथी अविवेक छोडीने पोतानुं चैतन्यस्वरूप प्राप्त करी ले छे. ३९.
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मारवानुं ज कारण थाय छे. ४०.
प्रगट करतो थको जई शके? अर्थात् कोई जइ शके नहि.
सूचन करतो हतो के आ जिनेन्द्र भगवान सर्वश्रेष्ठ छे, एमनी आगळ बीजा कोईनो प्रभाव
रही शकतो नथी. ४१.
ते निरंतर सुंदर अने चंचळ नीलकमळो द्वारा पूजा पामी रह्युं होय. ४२.
जाणे अहमहमिका अर्थात् हुं पहेलां पहोंचुं, हुं पहेलां पहोंचुं, आ रूपे भूख्या
भ्रमर ज तेमनी उपर पडी रह्या होय. ४३.
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के आपना चरणोनी शोभा ते कमळो करतां वधारे हती. ४४.
जाणे हरणे चन्द्रनो आश्रय लीधो छे, एम हुं समजुं छुं. ४५.
आपना नखोना किरणोना ब्हाने तेना नेत्रकटाक्षोनी कान्ति संग पामी शके छे. ४६.
होय छे, नहि के चन्द्रनो. अभिप्राय एम छे के जेवी रीते कोई चन्द्रनो प्रकाश
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आवे छे, नहि के चन्द्रनो, कारण के ते तो स्वभावे प्रकाशक अने आह्लादजनक
ज छे. एवी ज रीते जो कोई अज्ञानी जीव आपने पामीने पण आत्महित करतो
नथी तो ए तेनो ज दोष छे, नहि के आपनो. कारण के आप तो स्वभावथी
बधा ज प्राणीओना हितकारक छो. ४७.
कोण बची शकतुं हतुं? अर्थात् कोई बाकी न रही शकत. ४८.
सज्जन पुरुष तेने (बन्ने हाथ कपाळ उपर स्थित) कर्या करे छे. ४९.
जाय छे, तेथी विद्वानो शिर नमावीने आपने नमस्कार करे छे. ५०.
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थई शकता नथी. ते सर्व तो आपना ज नाम छे. जेम के
वैद्य छो. ५२.
बीजा कोई तेनुं कारण थई शकतुं नथी. ५३.
आखुं य विश्व समाई जाय छे. ५४.