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शकतो नथी पण केवळ तेनुं रक्षण ज करे छे. बराबर ए ज रीते ते धनवान मनुष्य पण
ज्यारे ते धन पोताना उपभोगमां खरचतो नथी अने पात्रदानादि पण करतो नथी त्यारे
भला ते नोकरनी अपेक्षाए आनामां शुं विशेषता रहे छे? कांई पण नहि. ३६.
दाने च संयतजनस्य सुदुःखिते च
मात्मीयमन्यदिह कस्यचिदन्यपुंसः
दुःखी प्राणीओने पण दयापूर्वक दान आपवामां तथा पोताना उपभोगमां पण काम
आवे छे. तेने ज निश्चयथी पोतानुं धन समजवुं जोईए. तेनाथी विपरीत जे धन
आ उपर्युक्त कामोमां खरचवामां आवतुं नथी तेने कोई बीजा ज मनुष्यनुं धन
समजवुं जोईए. ३७.
लक्ष्मीरतः कुरुत संततपात्रदानम्
दाकृष्यमाणमपि वर्धत एव नित्यम्
चारे तरफथी काढवामां आवतुं होवा छतां पण पाणी हंमेशा वधतुं ज रहे छे. ३८.
सर्वस्य पूज्यजनपूजनहानिहेतुः
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मेकत्र जन्मनि परं प्रथयन्ति लोकाः
कोई विवाहादि कार्योमां करवामां आवे तो लोको केवळ एक जन्ममां ज तेना
दोषमात्रने प्रसिद्ध करे छे.
दानादिथी उत्पन्न थनार पुण्य रहित होवाना कारणे सुख पण प्राप्त थतुं नथी. आ रीते जे
व्यक्ति धार्मिक कार्योमां लोभ करे छे ते बन्नेय लोकमां पोतानुं अहित करे छे. एनाथी
विपरीत जे मनुष्य केवळ विवाहादिरूप गृहस्थना कार्योमां लोभ करे छे तेवो माणस कृपण
आदि शब्दो द्वारा फक्त आ जन्ममां ज तिरस्कार करी शके छे परंतु परलोक तेनो सुखमय
ज वीते छे. तेथी ज गृहस्थना कार्योमां करवामां आवतो लोभ एटलो निन्द्य नथी जेटलो
धार्मिक कार्योमां करवामां आवतो लोभ निंदनीय छे. ३९.
रङ्कः कलङ्करहितो ऽप्यगृहीतनामा
शब्दः समुच्चलति नो जगति प्रकामम्
अर्थात् तेनो मनुष्य जन्म लेवो व्यर्थ थाय छे. कारण के ते लक्ष्मी प्राप्त करीने
पण दरिद्री जेवो रहे छे तथा दोषोथी रहित होवा छतां पण यशस्वी थई शकतो
नथी. ४०.
कर्मोपनीतविधिना विदधाति पूर्णम्
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मेतत्फलं यदिह संततपात्रदानम्
करवानुं अहीं ए ज प्रयोजन छे के निरंतर पात्रदान आपवामां आवे. ४१.
यज्जीवितादपि निजाद्दयितं जनानाम्
मन्या विपत्तय इति प्रवदन्ति सन्तः
बीजी विपत्तिओ ज छे एम साधुपुरुषो कहे छे.
फरीथी पण प्राप्त थई जाय छे. पण एनाथी उल्टुं जो तेनो दुरुपयोग खोटा व्यसनादिमां करवामां
आवे अथवा दान अने भोगरहित केवळ तेनो ज संचय ज करवामां आवे तो ते मनुष्योने
विपत्तिजनक ज थाय छे. एनुं कारण ए छे के सुखनुं कारण जे पुण्य छे तेनो ज संचय तेमणे
पात्रदानादिरूप सत्कार्यो द्वारा कदी कर्यो ज नथी. ४२.
व्यावर्तते पितृववान्ननु बन्धुवर्गः
पुण्यं भविष्यति ततः क्रियतां तदेव
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हे भव्य जीवो! तमे ते ज पुण्यनुं उपार्जन करो. ४३.
विद्यावपुर्धनगृहाणि कुले च जन्म
तस्मात् किमत्र सततं क्रियते न यत्नः
द्वारा ज प्राप्त थाय छे. तो पछी हे भव्य जन! तमे ते पात्रदाननी बाबतमां निरंतर
प्रयत्न केम नथी करता? ४४.
रर्थेन तावदिह कारयितव्यमास्ते
संचिन्तयन्नपि गृही मृतिमेति मूढः
वधारे धन थशे तो धर्मना निमित्ते दान करीश. आम विचार करता करता ज
ते मूर्ख गृहस्थ मरण पामी जाय छे. ४५.
निर्भोगदानधनबन्धनबद्धमूर्तेः
र्व्याहूतकाककुल एव बलिं स भुङ्क्ते
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कांई पण लाभ नथी. तेनी अपेक्षाए तो ते कागडो ज सारो छे जे ऊंचा अनेक
वचनो (का, का) द्वारा बीजा कागडाओने बोलावीने ज बलि (श्राद्धमां अपायेलुं द्रव्य)
खाय छे. ४६.
व्यावर्तनप्रसृतखेदभरातिखिन्नाः
पूर्णा इवानिशमबाधमतिस्वपन्ति
मनुष्यना घरने प्राप्त करीने अनंत
पुण्यथी प्राप्त थयेल ते धननो उपयोग न तो पात्रदानमां करे छे अने न पोताना उपयोगमां य.
ते केवळ तेनुं संरक्षण ज करे छे. आ बाबतमां ग्रंथकार उत्प्रेक्षा करे छे के ते धन एम विचारी
ज जाणे के ‘मने दानी पुरुषोने त्यां वारंवार जवा
निश्चिन्त रीते सूवे छे. ४७.
मध्यं व्रतेन रहितं सु
युग्मोज्झितं नरमपात्रमिदं च विद्धि
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करनार मनुष्योने कुपात्र अने बन्ने (सम्यग्दर्शन तथा व्रत) थी रहित मनुष्यने अपात्र
समजो. ४८.
मेतद्विशेषणविशिष्टमदुष्टभावात्
थाय छे (जुओ पाछळना श्लोक २०४नो विशेषार्थ). अथवा घणुं कहेवाथी शुं? अन्य
प्रकारना अर्थात् दूषित हृदयमां पण ते दाननुं फळ स्वभावथी अनेक प्रकारनुं प्राप्त
थाय छे. ४९.
दानानि तानि कथितानि महाफलानि
दानानि निश्चितमवद्यकराणि यस्मात्
गाय, सोनुं, पृथ्वी, रथ अने स्त्री आदिनां दान महान फळ आपनार नथी; केम
के ते निश्चयथी पाप उत्पादक छे. ५०.
तत्तत्र संस्कृतिनिमित्तमिह प्ररूढम्
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जैनं च शासनमतः कृतमस्ति दातुः
सुधी रहे छे. तेथी ते दाता द्वारा जैन शासन ज करवामां आव्युं छे. ५१.
कार्पण्यपूर्णहृदयाय न रोचते ऽदः
तेजो रवेरिव सदा हतकौशिकाय
मनुष्य)ने कदी रुचतो नथी. जेम दोषो अर्थात् रात्रिना संसर्ग रहित होवाने लीधे
समस्त प्राणीओने सुख आपनार सूर्यनुं तेज निन्दनीय घुवडने रुचिकर लागतुं
नथी. ५२.
मासन्नभव्यपुरुषस्य न चेतरस्य
दिन्दीवरं हसति चन्द्रकरैर्न चाश्मा
ज रीते चन्द्रकिरणो द्वारा श्वेत कमळ प्रफुल्लित थाय छे, परंतु पथ्थर प्रफुल्लित थतो
नथी. ५३.
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पद्मद्वयस्मरणसंजनितप्रभावः
पञ्चाशतं ललितवर्णचयं चकार
मुनिए ललित वर्णोना समूहथी संयुक्त आ बे अधिक दानपंचाशत् अर्थात् बावन
पद्योवाळा दानप्रकरणनी रचना करी छे. ५४.
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पण मोह रूपी शत्रुनो घात करवा माटे तीक्ष्ण तलवारनुं काम करे छे ते जिन भगवान
जयवंत हो .१.
विद्रात्यम्बुजपत्रवद्दहनतो ऽभ्यासस्थिताद्यद्ध्रुवम्
भ्रातः कात्र शरीरके स्थितिमतिर्नाशेऽस्य को विस्मयः
कमळना पांदडानी जेम म्लानता पामे छे तथा जे अस्त्र, रोग अने जळ आदि
द्वारा अकस्मात् नाश पामे छे; हे भाई! ते शरीरना विषयमां स्थिरतानी बुद्धि
क्यांथी थई शके? अने तेनो नाश थई जाय तेमां आश्चर्य ज शुं छे? अर्थात्
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जोईए. २.
विण्मूत्रादिभृतं क्षुधादिविलसद्दुःखाखुभिश्छिद्रितम्
चेदेतत्तदपि स्थिरं शुचितरं मूढो जनो मन्यते
तरस आदिना दुःखोरूप उंदरडाओ द्वारा करवामां आवेला छिद्रोथी संयुक्त छे, ते
क्लेशयुक्त शरीररूपी झुंपडी ज्यारे पोते ज घडपणरूपी अग्निथी घेराई जाय छे त्यारे
पण आ मूर्ख प्राणी तेने स्थिर अने अतिशय पवित्र माने छे. ३.
दुर्वाताहतवारिवाहस
तस्मादेतदुपप्लवाप्तिविषये शोकेन किं किं मुदा
वादळाओ समान जोत जोतामां ज विलीन थई जाय छे; तथा इन्द्रियविषयजन्य सुख
सदाय कामोन्मत्त स्त्रीना कटाक्षो समान चंचळ छे. आ कारणे आ बधाना नाशमां
शोकथी अने तेमनी प्राप्तिना विषयमां हर्षथी शुं प्रयोजन छे? कांई पण नहि.
अभिप्राय ए छे के जो शरीर, धन-संपत्ति, स्त्री अने पुत्र आदि समस्त चेतन-अचेतन
पदार्थ स्वभावथी ज अस्थिर छे तो विवेकी मनुष्योए तेमना संयोगमां हर्ष अने
वियोगमां शोक न करवो जोईए. ४.
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संबन्धो यदि विग्रहेण यदयं संभूतिधात्र्येतयोः
येनास्य प्रभवः पुरः पुनरपि प्रायो न संभाव्यते
मरण)नी जन्मभूमि छे अर्थात् आ बन्नेनो शरीर साथे अविनाभाव छे. माटे ज
निरंतर ते आत्मस्वरूपनो विचार करवो जोईए जेना द्वारा आगळ प्रायः (घणुं करीने)
संसारना दुःख आपनार आ शरीरनी उत्पत्तिनी फरीथी संभावना ज न रहे. ५.
यच्छोकं कुरुते तदत्र नितरामुन्मत्तलीलायितम्
नश्यन्त्येव नरस्य मूढमनसो धर्मार्थकामादयः
छे. कारण के ते शोक करवाथी कांई पण सिद्ध थतुं नथी परंतु तेनाथी केवळ ए
थाय छे के ते मूढ बुद्धिवाळा मनुष्यना धर्म, अर्थ अने कामरूपी पुरुषार्थ आदि ज
नष्ट थाय छे. ६.
शरीरमेत्तन्ननु सर्वदेहिनाम्
करोति कः शोकमतः प्रबुद्धधीः
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पामीने पोताना कोई बंधु वगेरेनुं मरण थतां क्यो बुद्धिमान मनुष्य तेने माटे शोक
करे? अर्थात् तेने माटे कोई पण बुद्धिमान शोक करतो नथी.
विषयमां शोक करवो विवेकहीनतानुं द्योतक छे. ७.
उत्पन्न थाय छे तेओ मरे पण छे. तो पछी बुद्धिमान मनुष्योने ते उत्पन्न थतां
हर्ष अने मरतां शोक शा माटे थवो जोईए? न थवो जोईए. ८.
यच्छोकः क्रियते तदत्र तमसि प्रारभ्यते नर्तनम्
निर्धूताखिलदुःखसंततिरहो धर्मः सदा सेव्यताम्
संसारमां बधी वस्तुओ नाश पामे छे, एम उत्तम बुद्धिद्वारा जाणीने समस्त
दुःखोनी परंपरानो नाश करनार धर्मनुं सदा आराधन करो.
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सुख (मोक्ष)ने प्राप्त करावे छे तेनुं ज आराधन करवुं जोईए. ९.
तज्जायेत तदैव तस्य भविनो ज्ञात्वा तदेतद्ध्रुवम्
सर्पे दूरमुपागते किमिति भोस्तद्घृष्टिराहन्यते
मरण थवा छतां पण शोक छोडो अने विनयपूर्वक सुखदायक धर्मनुं आराधन करो.
ठीक छे
सा माभूदथवा स्वकर्मवशतस्तस्मान्न ते ता
ये कुर्वन्ति शुचं मृते सति निजे पापाय दुःखाय च
न ये थाय तोपण तेओ एटला मूर्ख नथी. अमे तो ते ज मूर्खोने मूर्खोमां श्रेष्ठ
अर्थात् अतिशय मूर्ख मानीए छीए जे कोई इष्ट मनुष्यनुं मरण थतां पाप अने
दुःखना निमित्तभूत शोकने दूर करे छे.
एटला बधा जड (मूर्ख) गणवामां आवता नथी. परंतु जे मनुष्य कोई इष्ट जननो वियोग थतां
शोक करे छे तेमने मूर्ख ज नहि पण मूर्खशिरोमणि (अतिशय जड) गणवामां आवे छे. कारण
ए छे के मूर्ख समजवामां आवता ते प्राणीओ तो आवेलुं दुःख दूर करवा माटे ज कांई ने कांई
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उत्पन्न करवानो प्रयत्न करे छे. एनुं पण कारण ए छे के ते शोकथी
निःशेषं जगदिन्द्रजालस
तत्किंचित्कुरु येन नित्यपरमानन्दास्पदं गच्छसि
सांभळ्युं नथी? अने शुं प्रत्यक्ष नथी देखतो? अर्थात् तमे एने अवश्य जाणो छो,
सांभळो छो अने प्रत्यक्षपणे देखो छो. तो पछी भला अहीं पोताना कोई संबंधी
मनुष्यनुं मरण थतां शोक केम करो छो? अर्थात् शोक छोडीने एवो कांईक प्रयत्न
करो के जेथी शाश्वत, उत्तम सुखना स्थानभूत मोक्षने पामी शको. १२.
प्राप्ते पुनस्त्रिभुवने ऽपि न रक्षकोऽस्ति
पूत्कृत्य रोदिति वने विजने स मूढः
मृत्यु पामे त्यारे शोक करे छे ते मूर्ख निर्जन वनमां बूमो पाडीने रुदन करे छे.
अभिप्राय ए छे के जेवी रीते जनशून्य (मनुष्य विनाना) वनमां रुदन करनारना
रोवाथी कांई पण प्रयोजन सिद्ध थतुं नथी तेवी रीते कोई इष्ट जन मृत्यु पामतां,
तेना माटे शोक करवावाळाने पण कांई प्रयोजन सिद्ध थतुं नथी, परंतु तेथी दुःखदायक
नवीन कर्मोनो ज बंध थाय छे. १३.
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पापेन तद्भवति जीव पुराकृतेन
पापस्य तौ न भवतः पुरतोऽपि येन
ते पापनो ज नाश करवानो प्रयत्न कर के जेथी आगळ पण ते बन्ने (इष्ट वियोग
अने अनिष्टसंयोग) न थई शके. १४.
तल्लाभो ऽथ यशोऽथ सौख्यमथ वा धर्मो ऽथ वा स्याद्यदि
प्रायस्तत्र सुधीर्मुधा भवति कः शोकोग्ररक्षोवशः
शोकनो प्रारंभ करवो बराबर छे. परंतु जो अनेक प्रयत्नो द्वारा पण ते
चारेमांथी घणुं करीने कोई एक पण उत्पन्न न थतुं होय तो पछी क्यो
बुद्धिमान मनुष्य व्यर्थ ते शोकरूपी महाराक्षसने आधीन थाय? अर्थात् कोई
नहीं. १५.
प्रातः प्रयान्ति सहसा सकलासु दिक्षु
लोकाः श्रयन्ति विदुषा खलु शोच्यते कः
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ज रीते मनुष्य पण कोई एक कुळमां स्थित रहीने पछी मृत्यु पामीने अन्य कुळोनो
आश्रय करे छे. तेथी विद्वान मनुष्य तेने माटे कांई पण शोक करता नथी. १६.
तस्मिन् दुर्गतिपल्लिपातिकुपथैर्भ्राम्यन्ति सर्वे ऽङ्गिनः
प्राप्यालोक्य च सत्पथं सुखपदं याति प्रबुद्धो ध्रुवम्
खोटा मार्गे परिभ्रमण करे छे. ते (संसार
समीचीन मार्ग जोईने निश्चयथी सुखना स्थानभूत मोक्षने प्राप्त करी ले छे.
दीवो प्राप्त थई जाय छे तो ते तेना सहारे योग्य मार्गनी खोज करीने तेना द्वारा इष्ट स्थानमां
पहोंची जाय छे. बराबर एवी ज रीते आ संसारी प्राणी पण दुःखोथी भरेला आ अज्ञानमय
संसारमां मिथ्यादर्शनादिने वशीभूत थईने नरकादि दुर्गतिओमां पहोंचे छे अने त्यां अनेक प्रकारना
कष्टो सहे छे. तेने ज्यारे निर्मळ सद्गुरुनो उपदेश मळे छे त्यारे ते तेमांथी प्रबुद्ध थईने
मोक्षमार्गनो आश्रय करे छे अने तेना द्वारा मुक्तिपुरीमां जई पहोंचे छे. १७.
स्तत्रैव याति मरणं न पुरो न पश्चात्
शोकं परं प्रचुरदुःखभुजो भवन्ति
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मरे छे अने न पछी, पण छतां य मूर्ख मनुष्यो पोताना कोई संबंधीनुं मृत्यु
थतां अतिशय शोक करीने बहु ज दुःख भोगवे छे. १८.
जीवा यान्ति भवाद्भवान्तरमिहाश्रोन्तं तथा संसृतौ
प्रायः प्रारभते ऽधिगम्य मतिमानस्थैर्यमित्यङ्गिनाम्
पर्यायमांथी बीजी पर्यायमां जाय छे. तेथी बुद्धिमान मनुष्य उपर्युक्त प्रकारे
प्राणीओनी अस्थिरता जाणीने घणुं करीने कोई इष्ट संबंधीनो जन्म थतां हर्ष पामता
नथी अने तेनुं मृत्यु थतां शोक पामतां नथी. १९.
मानुष्यं यदि दुष्कुले तदघतः प्राप्तं पुनर्नश्यति
द्राग्बाल्ये ऽपि ततो ऽपि नो वृष इति प्राप्ते प्रयत्नो वरः
पर्याय घणी मुश्केलीथी प्राप्त थाय छे. जो कदाच ते मनुष्यभव प्राप्त पण करी
ले छे तो पण नीच कुळमां उत्पन्न थवाथी तेनो ते मनुष्यभव पापाचरणपूर्वक
ज नष्ट थई जाय छे. जो कोई प्रकारे उत्तम कुळमां य उत्पन्न थयो तोपण त्यां
ते कां तो गर्भमां ज मरी जाय छे अथवा जन्म लेती वखते मरी जाय छे अथवा
बाल्यावस्थामां पण शीध्र मरण पामी जाय छे. तेथी पण धर्मनी प्राप्ति थई
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विषयमां उत्कृष्ट प्रयत्न करवो जोईए. २०.
प्रतिक्षणमिदं जगज्जलदकूटवन्नश्यति
प्रियेऽपि किमहो मुदा किमु शुचा प्रबुद्धात्मनः
अने नष्ट पण अवश्य थाय छे. आ कारणे अहीं ज्ञानी जीवने कोई प्रियजननो जन्म
थतां हर्ष अने तेनुं मरण थतां शोक केम थवो जोईए? अर्थात् न थवो जोईए. २१.
सा वेला तु मृतेर्नृपक्ष्मचलनस्तोकापि देवैरपि
कः सर्वत्र दुरन्तदुःखजनकं शोकं विदध्यात् सुधीः
पण ओळंगी शकतो नथी. आ कारणे कोई पण इष्ट जननुं मृत्यु थतां क्यो बुद्धिमान
मनुष्य सुखदायक कल्याणमार्ग छोडीने सर्वत्र अपार दुःख उत्पन्न करनार शोक करे?
अर्थात् कोई पण बुद्धिमान् शोक करतो नथी. २२.
जाते यच्च मुदं तदुन्नतधियो जल्पन्ति वातूलताम्
मृत्यूत्पत्तिपरम्परामयमिदं सर्वं जगत्सर्वदा
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उन्नत बुद्धिना धारक गणधर आदि पागलपणुं कहे छे. कारण के मूर्खतावश जे खोटी
प्रवृत्तिओ करवामां आवी होय तेनाथी थता कर्मना प्रकृष्ट बंध अने तेना उदयथी
सदा आ आखुंय विश्व मृत्यु अने उत्पत्तिनी परंपरास्वरूप छे. २३.
संसारे बहुदुःखजालजटिले शोकीभवत्यापदि
कः कृत्वा भयदादमङ्गलकृते भावाद्भवेच्छङ्कितः
छे. बराबर छे
कदी शंकित थाय? अर्थात् न थाय.
जोईए. छतां जो एवी आपत्तिओ आवतां प्राणी शोकादिथी संतप्त थाय छे तो एमां तेनी
अज्ञानता ज कारण छे केम के ज्यारे संसार स्वभावथी ज दुःखमय छे तो आपत्तिओनुं आववुं
जवुं तो रहेवानुं ज. तो पछी एमां रहेता थका भला हर्ष अने विषाद करवाथी क्युं प्रयोजन सिद्ध
थवानुं? २४.
लभत उदयमस्तं पूर्णतां हीनतां च
स्तनुमिह तनुतस्तत्कात्र मुत्कश्च शोकः
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अने कळाओनी हानि
रहे छे तेवी ज रीते संसारी प्राणीनुं हृदय पण पापथी कलुषित रहे छे तथा जेम
चंद्र एक राशि (मीन-मेष वगेरे)थी बीजी राशिने प्राप्त थाय छे तेवी ज रीते संसारी
प्राणी पण एक शरीर छोडीने बीजा शरीरनुं ग्रहण कर्या करे छे. आवी स्थिति होतां
संपत्ति अने विपत्तिनी प्राप्तिमां जीवे हर्ष अने विषाद शा माटे करवो जोईए?
अर्थात् न करवा जोईए . २५.
किमिति तदभिघाते खिद्यते बुद्धिमद्भिः
व्यभिचरति कदाचित्सर्वभावेषु नूनम्
छे? अर्थात् तेमनो नश्वर स्वभाव जाणीने तेमणे खेदखिन्न न थवुं जोईए. जेवी
रीते उष्णता अग्निनो व्यभिचार करती नथी अर्थात् ते सदा अग्नि होय त्यां होय
छे अने तेना अभावमां कदी पण नथी होती; बराबर एवी ज रीते स्थिति (ध्रौव्य),
उत्पाद अने व्यय पण निश्चयथी पदार्थो होय त्यां अवश्य होय छे अने तेमना
अभावमां कदी पण होता नथी. २६.
जनयति तदसातं कर्म यच्चाग्रतो ऽपि
वट इव तनुबीजं त्यज्यतां स प्रयत्नात्