Padmanandi Panchvinshati-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अर्थपरिज्ञाननुं कारण जिनवाणी छे ................................................. १३२ ....................... ६५
आत्मानुं ज नाम धर्म छे ............................................................ १३३ ....................... ६५
माध्यमिक आदि अन्य वादीओ द्वारा कल्पित आत्माना स्वरूपनो
निर्देश करीने तेना यथार्थ स्वरूपनुं दिग्दर्शन ............................. १३४ ....................... ६६
आत्माना अस्तित्वनी सिद्धि........................................................... १३५-३६............ ६७-६८
अन्य वादीओ द्वारा परिकल्पित आत्माना व्यापकत्व आदिनुं निराकरण .. १३७ ....................... ६८
आत्मानुं कर्तृत्व अने भोक्तृत्व ....................................................... १३८ ...................... ७०
ते आत्मानुं स्वरूप नय-प्रमाणादिनो आश्रयथी ग्रहण करवुं जोईए ...... १३९ ...................... ७१
राग-द्वेषना परित्यागनो उपदेश ...................................................... १४०-१४५ ......... ७३-७५
परमात्मा आ ज शरीरनी अंदर स्थित छे ...................................... १४६ ...................... ७५
पर पदार्थोमां इष्टानिष्ट कल्पनानो निषेध ........................................ १४७-४९ ................. ७६
तत्त्ववित् कोण छे? ...................................................................... १५० ...................... ७७
सुख-दुःखनो अविवेक ................................................................... १५१ ...................... ७७
आत्माने परथी भिन्न समजवो ए ज समस्त उपदेशनुं रहस्य छे ...... १५२ ...................... ७७
योगीनुं स्वरूप ............................................................................ १५३ ...................... ७८
परथी भिन्न आत्मतत्त्वनो विचार अने तेनुं फळ .............................. १५४-६१............ ७८-८२
गुरुनो उपदेश दिव्य अमृत समान छे ............................................ १६२ ...................... ८२
योगी-पथिकोनुं स्वरूप अने तेमने नमस्कार ...................................... १६३ ...................... ८३
ते धर्मनुं वर्णन केवळी ज करी शके छे ........................................... १६४ ...................... ८३
आ धर्म-रसायण मिथ्यात्वादि बंधकारणोनो परित्याग करतां

ज प्राप्त थई शके छे .......................................................... १६५ ...................... ८३
मनुष्य पर्याय अने उत्तम कुळ आदि दुर्लभ छे, तो पछी ते
पामीने पण धर्म न करवो ए मूर्खाई छे ............................... १६६-६९ ............ ८४-८५
शरीरने स्वस्थ अने आयुष्यने दीर्घ समजीने भविष्यमां धर्माचरण
करवानो विचार करवो ते नितान्त जडता छे ............................. १७० ...................... ८५
अवस्था साथे घणुं करीने तृष्णा पण वधे ज छे............................... १७१-७२ ................. ८६
परीवर्तनशील संसारमां जीवन अने धनादिनी नश्वरता ....................... १७३-७६............ ८७-८८
मृत्यु अनिवार्य होवाथी विवेकीजनो तेने माटे शोक करता नथी ............ १७७ ...................... ८८
धर्मनुं फळ ................................................................................. १७८-८१ ........... ८९-९०
धर्मनी रक्षाथी ज आत्मरक्षा संभवे छे ........................................... १८२-८३ ........... ९०-९१
धर्मनो महिमा ........................................................................... १८४-९६............ ९१-९६
प्रकरणना अंते ग्रन्थकारनी गुरु पासे वर याचना ............................. १९७ ...................... ९७
विषय
श्लोक
पृष्ठांक
[ ८ ]