उक्त सम्यग्दर्शनादि आत्मस्वरूप छे ............................................... ७९ ........................ ४२
शुद्धनयनुं आत्मतत्त्व अखंड छे ...................................................... ८० ........................ ४२
निश्चय सम्यग्दर्शनादिनुं स्वरूप ....................................................... ८१ ........................ ४३
उत्तम क्षमानुं स्वरूप .................................................................... ८२ ........................ ४३
क्रोध मुनिधर्मनो विघातक छे ......................................................... ८३ ........................ ४४
क्रोधना कारणो उपस्थित थतां मुनिजन शुं विचार करे छे ................... ८४-८६ .............. ४४-४५
मार्दव धर्मनुं स्वरूप..................................................................... ८७-८८ ............. ४५-४६
आर्जव धर्मनुं स्वरूप ................................................................... ८९-९० ................... ४६
सत्य वचननुं स्वरूप अने तेनी उपादेयता ....................................... ९१-९३ .................. ४७
शौच धर्मनुं स्वरूप अने बाह्य शौचनुं अकिंचित्करपणुं ........................ ९४-९५ .................. ४८
संयमनुं स्वरूप अने तेनी उपादेयता ............................................... ९६-९७ .............. ४८-४९
तपनुं स्वरूप अने तेनी उपादेयता .................................................. ९८-१०० ........... ४९-५१
त्याग अने आकिंचन्यनुं स्वरूप ...................................................... १०१ ...................... ५१
मुनिओनी दुर्लभता ..................................................................... १०२ ...................... ५२
ममत्वना अभावमां शरीर अने शास्त्र आदिने परिग्रह कही शकातो नथी १०३ .................. ५२
ब्रह्मचर्यनुं स्वरूप अने तेना धारकोनी प्रशंसा ................................... १०४-५ .................. ५३
आ दस धर्म मोक्षमहेलमां जवा माटे नीसरणीना पगथिया समान छे. १०६ ...................... ५४
स्वास्थ्यनुं स्वरूप ......................................................................... १०७ ...................... ५४
चिद्रूपनुं स्वरूप ........................................................................... १०८ ...................... ५५
मुक्तिनुं स्वरूप ........................................................................... १०९ ...................... ५५
अतीन्द्रिय आत्मा संबंधी कांईक कहेवानी प्रतिज्ञा .............................. ११० ...................... ५५
शृंगारादि प्रधान काव्य अने तेमनी रचना करनार कविओनी निन्दा...... १११-१३ ........... ५६-५७
स्त्री शरीरनुं स्वरूप ..................................................................... ११४-१५ ................ ५७
स्त्रीनी भयंकरता.......................................................................... ११६-१८................. ५८
मोहनो महिमा देखाडी तेना त्यागनो उपदेश ................................... ११९-२३ ........... ५९-६०
वीतराग अने सर्वज्ञ आप्तनुं ज वचन प्रमाण होई शके छे,
तेमना वचनमां संदेह करवो ए मूर्खाई छे .............................. १२४-२५ ................. ६१
परोक्ष पदार्थना विषयमां जिनवचनने प्रमाण मानवुं जोईए ............... १२८ ....................... ६३
ज्ञाननो महिमा .......................................................................... १२९-३१ ........... ६३-६४