चेतन आत्माने छोडी परमां अनुराग कर्मबंधनुं कारण छे. ..................... ३९ .................... २५
मूळगुणो विना उत्तरगुणोना पालननो प्रयत्न घातक छे. ......................... ४० .................... २५
वस्त्रना दोष देखाडीने दिगंबरत्वनी प्रशंसा ........................................... ४१ ..................... २६
केशलोच वैराग्यादिने वधारनार छे. ..................................................... ४२ ..................... २६
स्थितिभोजननी प्रतिज्ञा .................................................................... ४३ .................... २७
समताभाव..................................................................................... ४४-४५.......... २७-२८
प्रमाद रहित थईने एकान्तवासनी प्रतिज्ञा ........................................... ४६ .................... २८
संसारनुं स्वरूप जोईने हर्ष-विषादनी व्यर्थता ........................................ ४७ .................... २८
राग-द्वेषना परित्याग विना संवर अने निर्जरा संभवित नथी ................. ४८ .................... २९
संसारसमुद्रथी पार थवानी सामग्री .................................................... ४९ .................... २९
मोहने कृश कर्या विना तप आदिनो क्लेश सहेवो व्यर्थ छे .................... ५० .................... ३०
जे कषायोनो निग्रह करतो नथी तेना परिषह सहवा मायाचार छे .......... ५१ .................... ३०
समस्त अनर्थोनुं कारण अर्थ (धन) ज छे........................................... ५२ .................... ३१
शय्या माटे घास आदिनी पण अपेक्षा राखवाथी निर्ग्रन्थपणुं
नाश पामे छे......................................................................... ५३ .................... ३१
मोक्षनी पण अभिलाषा तेनी प्राप्तिमां बाधक छे ................................. ५५ .................... ३२
परिग्रहादिनी निंदा .......................................................................... ५६ .................... ३२
साधु प्रशंसा .................................................................................. ५७-५८............... ३३
आचार्यनुं स्वरूप ............................................................................. ५९-६० .......... ३३-३४
उपाध्यायनुं स्वरूप ........................................................................... ६१ .................... ३४
साधुओनुं स्वरूप अने तेमनी सहनशीलता .......................................... ६२-६६ .......... ३५-३६
आत्मज्ञान विना करवामां आवेल कायक्लेश धान्यरहित खेतरनी
रक्षा करवा समान व्यर्थ छे ....................................................... ६७ .................... ३७
तीर्थनुं स्वरूप ................................................................................. ६९ .................... ३८
रत्नत्रयधारक मुनिनो तिरस्कार करनार नरकना पात्र थाय छे .................. ७० .................... ३८
मुनिओनी स्तुति असंभव छे ............................................................ ७१ .................... ३८
व्यवहारसम्यग्दर्शनादिनुं स्वरूप अने ते त्रणे विना मुक्तिनी असंभवना ..... ७२-७६ .......... ३९-४१
सम्यग्दर्शन विना ज्ञान अने चारित्र मिथ्या कहेवाय छे ......................... ७७ .................... ४१