शान्तिनाथनुं स्मरण ......................................................................... ५ .........................४
धर्मोपदेष्टा जिनदेवनुं स्मरण.............................................................. ६..........................४
धर्मनुं स्वरूप अने तेना भेद ............................................................ ७ .........................४
धर्मना मूळभूत दया धारणानी प्रेरणा................................................. ८ ...................... ५
प्राणीओना वधमां पितृ आदिना वधनो दोष संभवे छे ......................... ९ ......................... ६
जीवननुं दान सर्वश्रेष्ठ दान छे........................................................... १० ....................... ६
दया विना दान, तप अने ध्यानादि निरर्थक छे .................................... ११ ....................... ७
मुनिधर्मनुं आलंबन सद्गृहस्थ छे. ..................................................... १२ ....................... ७
गृहस्थाश्रमनुं स्वरूप ........................................................................ १३ ....................... ८
गृहस्थधर्मना अगियार स्थानोनो निर्देश .............................................. १४ ....................... ८
समस्त व्रतविधान व्यसनोना परित्याग उपर निर्भर छे.......................... १५ ....................... ९
महापापस्वरूप सात व्यसनोनो नाम निर्देश ......................................... १६ .................... १०
द्यूत (जुगार) सर्व व्यसनोमां मुख्य छे .............................................. १७-१८.......... १०-११
मांसनुं स्वरूप अने तेना भक्षणमां निर्दयता ......................................... १९-२०.......... ११-१२
मद्यनुं स्वरूप अने मद्यपानथी थती हानि ........................................... २१-२२.......... १२-१३
धोबीनी शिला समान वेश्याओ नरकनुं द्वार छे .................................... २३-२४.......... १३-१४
शिकारमां निर्दयताथी दीन हीन प्राणीओनो व्यर्थ वध
करवामां आवे छे. ................................................................... २५-२६ .......... १४-१५
परस्त्री अने परधनना अनुरागथी थती हानि ...................................... २९-३०................ १६
उक्त द्यूतादि सात व्यसनोने कारणे कष्ट प्राप्त थयेल
व्यसनोथी थती हानि बतावीने तेमनाथी विमुख रहेवानी प्रेरणा ............. ३३ .................... २२
मिथ्याद्रष्टि आदिनो संग छोडीने सत्पुरुषोना संगनी प्रेरणा .................... ३४-३५............... २३
कळिकाळमां दुष्टोनी वच्चे साधुजनोनुं (सज्जनोनुं) जीवित रहेवुं मुश्केल छे. ३६ .................... २४
दुर्जननी संगतिनी अपेक्षाए तो मरवुं सारुं छे ..................................... ३७ .................... २४