Padmanandi Panchvinshati-Gujarati (Devanagari transliteration).

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दानथी जेनी कीर्तिनो फेलावो थयो नथी ते जीववा छतां मृतक समान छे.... ४० .................११६
मनुष्यभवनी सफळता दानमां छे, अन्यथा उदरपूर्ति तो कूतरा पण करे छे .. ४१ .................११६
दान सिवाय अन्य प्रकारे करवामां आवतो धननो उपयोग कष्टदायक छे ...... ४२ ................ ११७
प्राणी साथे परलोकमां धर्म ज जाय छे, नहि के धन ............................. ४३ ................ ११७
सर्व अभिष्ट सामग्री पात्रदानथी ज प्राप्त थाय छे ................................ ४४ ................ ११८
जे व्यक्ति धननो संचय अने पुत्रविवाहादि लक्ष्यमां राखीने भविष्यमां

दाननी भावना राखे छे तेना जेवो मूर्ख बीजो नथी ....................... ४५ ................ ११८
कृपण गृहस्थथी तो कागडो पण सारो छे .............................................. ४६ ................ ११८
कृपणना धननी स्थिरता उपर ग्रन्थकारनी कल्पना.................................... ४७ ................ ११९
उत्तम पात्र आदिनुं स्वरूप अने तेमने आपेला दाननुं फळ ...................... ४८-४९ ....११९-१२०
दानना चार भेद .............................................................................. ५० ................ १२०
जिनालय माटे करवामां आवेलुं भूमिदान संस्कृतिनी स्थिरतानुं कारण छे ..... ५१ ................ १२०
कृपणने दाननो उपदेश रुचतो नथी, ते तो आसन्नभव्यने ज प्रीति

उत्पन्न करे छे .......................................................................... ५२-५३ ........... १२१
प्रकरणना अंते गुरु वीरनन्दीना उपकारनुं स्मरण .................................... ५४ ................ १२२
३. अनित्यपंचाशत्
११
११
५५
१२३१४७
प्रकरणना आरंभमां जिननुं स्मरण ....................................................... १ .................. १२३
शरीरनुं स्वरूप अने तेनी अस्थिरता ..................................................... २-३ ........१२३-१२४
शरीरादि स्वभावथी अस्थिर होवाथी तेमनो हर्ष-शोक मानवो योग्य नथी ... ४-३० ......१२४-१३५
यम सर्वत्र विद्यमान छे. .................................................................... ३१ .................१३६
उदय प्राप्त कर्मनुं फळ बधाने भोगववुं पडे छे ...................................... ३२ .................१३६
दैवनी प्रबळतानुं उदाहरण .................................................................. ३३ ................ १३७
मृत्युनो ग्रास थवा छतां पण अज्ञानी जीवो स्थिरतानो

अनुभव करे छे. ....................................................................... ३४-४१ ....१३७-१४०
संसारनी परीवर्तनशीलता जोईने गर्वनो अवसर रहेतो नथी..................... ४२-४३ ........... १४१
मनुष्य सम्पत्ति माटे केवा अनर्थ करे छे ............................................... ४४ ................ १४२
शोकथी थनारी हानिनुं दिग्दर्शन........................................................... ४५ ................ १४२
आपत्तिस्वरूप संसारमां विषाद करवो उचित नथी ................................... ४६ ................ १४३
जीवनादिने नश्वर देखीने पण आत्महित न करवुं ए पागलपणानुं

सूचक छे ................................................................................. ४७ ................ १४३
मृत्यु पासे कोई पण प्रयत्न चालतो नथी ............................................. ४८ ................ १४४
विषय
श्लोक
पृष्ठांक
[ १० ]