Padmanandi Panchvinshati-Gujarati (Devanagari transliteration).

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मनुष्य स्त्री-पुत्रादिमां ‘मारा-मारा’ करतो थको काळनो कोळियो
बनी जाय छे......................................................................... ४९ .................. १४४
दिवसोने मृत्यु द्वारा विभक्त आयुष्यना खंड ज गणवा जोईए ............... ५० .................. १४५
बीजानी तो शी वात? इन्द्र अने चन्द्र पण मृत्यना ग्रास बने छे ......... ५१ .................. १४५
संयोग-वियोग अने जन्म-मरणादि अविनाभावी छे ............................... ५२ .................. १४५
दैवनी प्रबळता जोईने धर्ममां रत थवुं जोईए .................................... ५३-५४..............१४६
अनित्य पंचाशत् जयवंत हो ............................................................. ५५ .................. १४७
४. एकत्वसप्तति
८०
१४८१७०
परमात्मा अने चिदात्मक ज्योतिने नमस्कार ......................................... १-३ ............... १४८
चित्तत्व प्रत्येक प्राणीमां छे, पण अज्ञानी तेने जाणता नथी.................... ४ .................. १४९
अनेक शास्त्रोने जाणनार पण तेने काष्टमां स्थित
अग्निनी जेम जाणता नथी ...................................................... ५ .................... १४९
केटलाक समजाववा छतां पण तेनो स्वीकार नथी करता .......................... ६..................... १४९
केटलाक अनेकान्तात्मक वस्तुस्वरूपनुं एकान्तरूपे ग्रहण करीने जन्मांध
पुरुषोनी जेम नष्ट थाय छे ...................................................... ७ .................... १४९
केटलाक थोडुंक जाणीने पण तेनुं अभिमान वशे ग्रहण करता नथी........... ८ .................... १५०
लोकोए धर्मनुं स्वरूप विकृत करी नाख्युं छे.......................................... ९ .................... १५१
क्यो धर्म यथार्थ छे ........................................................................ १० .................. १५१
चैतन्यनुं ज्ञान अने तेनो संयोग दुर्लभ छे .......................................... ११ .................. १५१
भव्य जीव पांच लब्धिओ पामीने मोक्षमार्गमां स्थित थाय छे ............... १२ .................. १५१
मुक्तिना कारणभूत सम्यग्दर्शनादिनुं स्वरूप ........................................... १३-१४............. १५३
शुद्ध निश्चयनयनी अपेक्षाए ते सम्यग्दर्शनादि भिन्न न होतां

अखंड आत्मस्वरूप छे.............................................................. १५ .................. १५३
प्रमाण, नय अने निक्षेप अर्वाचीन पदमां उपयोगी छे ......................... १६ .................. १५३
निश्चय अने व्यवहार द्रष्टिमां आत्मावलोकन......................................... १७ .................. १५४
जे एक अखंड आत्माने जाणे छे ते ज मुक्ति पामे छे ........................ १८-१९............. १५४
केवळज्ञान-दर्शनस्वरूप आत्मा ज जाणवा देखवा योग्य छे ....................... २०-२१......१५४-१५५
योगी गुरु उपदेशथी आत्माने जाणीने कृतकृत्य थई जाय छे .................. २२ .................. १५५
जे प्रेमथी ते परम ज्योतिनी वात पण सांभळे छे ते मुक्तिनुं

भाजन भव्य छे एम समजवुं जोईए. ....................................... २३ .................. १५५
जे कर्मथी भिन्न एक आत्माने जाणे छे ते तेनुं स्वरूप प्राप्त करी ले छे . २४ .................. १५५
परनो संबंध बंधनुं कारण छे ........................................................... २५ ...................१५६
विषय
श्लोक
पृष्ठांक
[ ११ ]