Padmanandi Panchvinshati-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कर्मना अभावमां आत्मा एवो शान्त थई जाय छे जेवो
वायुना अभावमां समुद्र ........................................................... २६ ...................१५६
आत्म-परनो विचार......................................................................... २७-३८...... १५६-१५९
ते ज आत्मज्योति ज्ञान-दर्शनादिरूप सर्वस्व छे .................................... ३९-५२...... १६०-१६३
मोक्षनी पण इच्छा मोक्षप्राप्तिमां बाधक छे ......................................... ५३ ...................१६३
भव्य जीवे चैतन्यस्वरूप आत्मानो विचार करी जन्मपरंपरा

नष्ट करवी जोईए. .................................................................. ५४-५७...... १६३-१६४
अनेक रूपोने प्राप्त ते परमज्योतिनुं वर्णन करवुं संभव नथी ................. ५८-६१ ...... १६४-१६५
जे जीव ते आत्मतत्त्वनो विचार ज करे छे ते देवो द्वारा पूजाय छे ......... ६२ ................... १६६
सर्वज्ञदेवे ते परमज्योतिनी प्राप्तिनो उपाय साम्यभाव बताव्यो छे........... ६३ ................... १६६
साम्यना समानार्थक नाम अने तेनुं स्वरूप .......................................... ६४-६९ ...... १६६-१६७
समता-सरोवरना आराधक आत्म-हंसने नमस्कार ................................... ७० ...................१६७
ज्ञानी जीवने तापकारी मृत्यु पण अमृत (मोक्ष)ना संगनुं कारण छे ......... ७१ ...................१६८
विवेक विना मनुष्य पर्याय आदिनी व्यर्थता ......................................... ७२ ................ १६८
विवेकनुं स्वरूप ................................................................................ ७३ ...................१६८
विवेकी जीवने संसारमां बधुं ज दुःखरूप प्रतिभासे छे........................... ७४ ...................१६८
विवेकी जीवने हेय शुं छे अने उपादेय शुं छे? .................................... ७५ ...................१६९
हुं क्या स्वरूपे छुं ........................................................................... ७६ ...................१६९
एकत्व सप्ततिने गंगा नदीनी उपमा .................................................. ७७ ...................१६९
ते एकत्व सप्तति संसार-समुद्रथी पार थवामां पुल समान छे ................ ७८ ...................१६९
मने कर्म अने तत्कृत विकृति आदि सर्व आत्माथी भिन्न पि्रतभासे छे ..... ७९ .................. १७०
एकत्व सप्ततिना अभ्यास आदिनुं फळ ............................................... ८० .................. १७०
५. यतिभावनाष्टक
११
११
९९
९९
१७११७४
मोहकर्मजनित विकल्पोथी रहित मुनि जयवंत हो .................................. १ .................... १७१
मुनि शुं विचार करे छे .................................................................... २-४ ..........१७१-१७२
कृति कोण कहेवाय छे....................................................................... ५ .................... १७२
ॠतु विशेष अनुसार कष्ट सहन करनार शान्त मुनिओना

मार्गे जवानी अभिलाषा .......................................................... ६..................... १७३
उत्कृष्ट समाधिनुं स्वरूप अने तेना धारक ............................................. ७ .................... १७३
अंतस्तत्त्वना ज्ञाता ते मुनि आपणने शान्तिनुं निमित्त थाव .................... ८ .................... १७४
यतिभावनाष्टकना अभ्यासनुं फल ........................................................ ९ .................... १७४
विषय
श्लोक
पृष्ठांक
[ १२ ]