Padmanandi Panchvinshati-Gujarati (Devanagari transliteration).

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६. उपासक संस्कार
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१७५१९२
धर्मस्थितिना कारणभूत आदि जिनेन्द्र अने श्रेयांस राजानुं स्मरण ............ १ .................... १७५
धर्मनुं स्वरूप .................................................................................. २ .................... १७५
दीर्घतर संसार कोनो छे? ................................................................. ३ .................... १७५
धर्मना बे भेद अने तेना स्वामी....................................................... ४ .....................१७६
गृहस्थ धर्मना हेतु केम मनाय छे? ................................................... ५ .....................१७६
कळिकाळमां, जिनालय, मुनिओनी स्थिति अने दानधर्मनुं

मूळ कारण श्रावक छे ............................................................... ६......................१७६
गृहस्थोना छ कर्म ........................................................................... ७ .....................१७६
सामायिक व्रतनुं स्वरूप ..................................................................... ८ .....................१७६
सामायिक माटे सात व्यसनोनो त्याग आवश्यक .................................... ९-१० ............... १७७
व्यसनीने धर्मान्वेषणनी योग्यता होती नथी ......................................... ११ .................. १७७
सात नरकोए जाणे पोतानी समृद्धि माटे एक एक

व्यसननी निमणूंक करी छे......................................................... १२ .................. १७७
पापरूप राजाए धर्मशत्रुना विनाश माटे पोतानुं राज्य सात
व्यसनो वडे सात अंगरूप बनाव्युं छे ......................................... १३ .................. १७८
भक्तिथी जिनदर्शनादि करनार स्वयं वंदनीय थई जाय छे ...................... १४ .................. १७८
जिनदर्शनादि न करनाराओनुं जीववुं व्यर्थ छे........................................ १५ .................. १७८
उपासकोए प्रातःकाळे अने त्यारपछी शुं करवुं जोईए ............................ १६-१७ ......१७८-१७९
ज्ञान-लोचननी प्राप्तिना कारणभूत गुरुओनी उपासना ........................... १८-१९............. १७९
चक्षु अने कान सहित होवा छतां पण आंधळा अने बहेरा कोण छे ....... २०-२१......१७९-१८०
देशव्रत सफळ क्यारे थाय छे ............................................................. २२ .................. १८०
आठ मूळगुणो अने बार उत्तर गुणोनो निर्देश .................................... २३-२४......१८०-१८१
पर्वोमां शुं करवुं जोईए ................................................................... २५ .................. १८२
श्रावके एवा देशादिनो आश्रय न करवो जोईए के ज्यां सम्यक्त्व

अने व्रत सुरक्षित न रही शके .................................................. २६ .................. १८२
भोगोपभोगपरिमाणनी विधेयता ........................................................ २७ .................. १८३
रत्नत्रयनुं पालन एवी रीते करवुं के जेथी जन्मान्तरमां
तत्त्वश्रद्धान वृद्धिगत थाय .......................................................... २८ .................. १८३
उपासके यथायोग्य परमेष्ठी, रत्नत्रय अने तेना धारकोनो
विनय करवो जोईए ................................................................ २९ .................. १८३
विनयने मोक्षनुं द्वार कहेवामां आवे छे ............................................... ३० .................. १८३
विषय
श्लोक
पृष्ठांक
[ १३ ]