Padmanandi Panchvinshati-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 16 of 404

 

background image
उपासके दान पण करवुं जोईए ......................................................... ३१ .................. १८४
दान विना गृहस्थ जीवन केवुं छे ....................................................... ३२-३५......१८४-१८५
साधर्मीओमां वात्सल्य विना धर्म संभवतो नथी ................................... ३६ .................. १८५
दया विना धर्म संभवतो नथी ............................................................. ३७ ............... १८५
दयानो महिमा .................................................................................. ३८-३९ ... १८५-१८६
मुनि अने श्रावकोना व्रत एक मात्र अहिंसानी सिद्धि माटे छे ................... ४० ................१८६
केवळ प्राणी पीडन ज पाप नथी, परंतु तेनो संकल्पे य पाप छे ............... ४१ ................१८६
बार अनुप्रेक्षाओनुं स्वरूप अने तेमना चिंतननी प्रेरणा............................. ४२-५८ ... १८६-१९१
दस भेदरूप धर्मना सेवननी प्रेरणा ....................................................... ५९ ............... १९१
मोक्षप्राप्ति माटे अंतस्तत्त्व अने बहिस्तत्त्व बन्नेनो ज आश्रय लेवो जोईए . ६० ............... १९१
आत्मानुं स्वरूप अने तेना चिंतननी प्रेरणा ............................................ ६१ ............... १९१
उपासक संस्कारना अनुष्ठानथी अतिशय निर्मळ धर्मनी प्राप्ति थाय छे ........ ६२ ............... १९२
७. देशव्रतोद्योतन
२७ .
१९३२०४
धर्मोपदेशमां सर्वज्ञना ज वचन प्रमाण छे. ............................................. १ ................. १९३
सम्यग्द्रष्टि एक होय तोपण प्रशंसनीय छे, मिथ्याद्रष्टि घणा
होय तो पण नहीं ..................................................................... २ ................. १९३
मोक्षवृक्षनुं बीज सम्यग्दर्शन अने संसारवृक्षनुं बीज मिथ्यादर्शन छे ............. ३ ............... १९४
देशव्रत कई अवस्थामां ग्रहण करवुं योग्य छे .......................................... ४ ................. १९४
उपासक द्वारा अनुष्ठेय समस्त व्रतविधान ................................................ ५ ................. १९५
व्रती गृहस्थनुं स्वरूप .......................................................................... ६.................. १९५
देशव्रतीना देवाराधनादि कार्योमां दान प्रमुख छे ....................................... ७ ................. १९५
आहारादि चतुर्विध दाननुं स्वरूप अने तेनी आवश्यकता............................ ८-११ ..... १९६-१९७
सर्व दानोमां अभयदान मुख्य केम छे ................................................... ११-१२ ...१९७-१९८
पापथी उपार्जित धननो सदुपयोग दान छे ............................................. १३-१४ .......... १९८
पात्रोना उपयोगमां आवनारुं धन ज सुखप्रद छे .................................... १५ ............... १९९
दान परंपराए मोक्षनुं पण कारण छे .................................................... १६-१७ ...१९९-२००
जिनदर्शनादि विना गृहस्थाश्रम पथ्थरनी नाव जेवो छे ............................. १८ ............... २००
दाता गृहस्थ चिन्तामणि आदिथी श्रेष्ठ छे .............................................. १९ ............... २००
धर्मस्थितिनी कारणभूत जिनप्रतिमा अने जिनभवनना निर्माणनी

आवश्यकता ............................................................................... २०-२३ ...२०१-२०२
अणुव्रतो धारण करवाथी स्वर्ग-मोक्ष प्राप्त थाय छे................................... २४ ............... २०३
विषय
श्लोक
पृष्ठांक
[ १४ ]