अणुव्रतो अने महाव्रतोथी एक मात्र मोक्ष ज साध्य छे............................ २६ ............... २०४
देशव्रतोद्योतन जयवंत हो ..................................................................... २७ ............... २०४
नमस्कारपूर्वक सिद्धो पासे मंगळ याचना ............................................. २-४ ........ २०५-२०६
आत्माने सर्वव्यापक केम कहेवामां आवे छे .......................................... ५ .................... २०७
आठ कर्मोना क्षयथी प्रगट थनार गुणोनो निर्देश .................................. ६..................... २०७
कर्मोनी दुःखप्रदता ........................................................................... ७ .................... २०८
ज्यारे एकेन्द्रियादि जीव पण उत्तरोत्तर हीन कर्मावरणथी
रहित सिद्ध पूर्ण सुख अने ज्ञान संयुक्त केम न होय? ................ ८-१० ........२०८-२०९
सिद्धज्योतिना आराधनथी योगी स्वयं पण सिद्ध थई जाय छे ............... १२ .................. २१०
सिद्धज्योतिनी विविधरूपता ................................................................ १३ .................. २११
अनेकान्त सिद्धान्तनुं अवगाहन करनार ज सिद्धात्मानुं रहस्य
सांगोपांग श्रुतना अभ्यासनुं फळ सिद्धत्वनी प्राप्ति छे ........................... १८ .................. २१३
आ सिद्धोनुं वर्णन मारे माटे मोक्षमहेल उपर चडवा माटे
नय-निक्षेपादिना आश्रित विवरण रहित सिद्ध जयवंत हो ....................... २१ .................. २१४
सिद्धस्वरूपना जाणकार साम्राज्यने पण तृण समान तुच्छ समजे छे ......... २२ .................. २१५
सिद्धोनुं स्मरण करनार पण वंदनीय छे .............................................. २३ .................. २१५
बुद्धिमानोमां अग्रणी कोण छे, ए माटे बाणनुं उदाहरण ....................... २४ ...................२१६
सिद्धात्मज्ञानथी शून्य शास्त्रान्तरोनुं ज्ञान व्यर्थ छे .................................. २५ ................ २१६
अनंत ज्ञान-दर्शनथी सम्पन्न सिद्धो पासे शिवसुखनी याचना .................. २६ .................. २१७
आत्माने गृहनी उपमा .................................................................... २७ .................. २१७
सिद्धोनी ज गति आदि अभीष्ट छे .................................................... २८ .................. २१८
सिद्धोनी आ स्तुति केवळ भक्तिवश करवामां आवी छे .......................... २९ .................. २१८