लीधे उक्त अरिहंत परमेष्ठीने विद्वानो द्वारा द्वेषनी पण संभावना करी शकाती नथी.
तेथी राग-द्वेष रहित थई जवाने लीधे तेमने समताभाव प्रगट्यो छे, अने आ
समताभाव प्रगटवाथी तेमने आत्मज्ञान तथा तेनाथी तेमने कर्मोनो वियोग थयो छे.
माटे कर्मोना क्षयथी जे अरिहंत परमेष्ठी अनंत सुख आदि गुणोनो आश्रय पाम्या
छे. ते अरिहंत परमेष्ठी सर्वदा तमारी रक्षा करो. ३.
श्रेणीतेक्षणबिम्बशुम्भदलिभृद्दूरोल्लसत्पाटलम्
स्त्यक्तं जाड्यहरं परं भवतु नश्चेतोऽर्पितं शर्मणे
सहित लाल वर्णना छे तथा जे नखोमां पडता इन्द्रना नेत्रोना प्रतिबिंबरूप भ्रमरोने
धारण करे छे, जे शोभाना स्थानरूप छे तेथी जे कमळनी उपमा धारण करवा छतां
पण धूळना संसर्ग विनाना होईने जडताने (अज्ञानने) हरनार छे; ते बन्ने चरणो
अमारा चित्तमां स्थिर थइने सुखना कारण थाव.
ज्यारे इन्द्र नमस्कार करता हता त्यारे तेना मुकुटमां जडेला रत्ननी छाया तेना उपर पडती हती
तेथी ते पण कमळनी जेम पाटल वर्णना थई जता हता. जो कमळमां भमरा रहे छे तो जिन
भगवानना पगना नखोमां पण नमस्कार करता इन्द्रना नेत्र प्रतिबिंबरूप भमरा विद्यमान हता.
कमळ जो श्री (लक्ष्मी)नुं स्थान मनाय छे तो ते जिन चरण पण श्री (शोभा)नुं स्थान हता. आम
कमळनी उपमा धारण करवा छतां पण जिनचरणोमां तेनाथी कांईक अधिक विशेषता हती. जेम
के
जडता(अज्ञान)ने नष्ट करनार हता. ४.