(मालिनी)
जयति जगदधीशः शान्तिनाथो यदीयं
स्मृतमपि हि जनानां पापतापोपशान्त्यै ।
विबुधकुलकिरीटप्रस्फु रन्नीलरत्न-
द्युतिचलमधुपालीचुम्बितं पादपद्मम् ।।५।।
अनुवाद : देवोना समूहोना मुकुटोमां प्रकाशमान नीलरत्नोनी कांतिरूपी
चंचळ भमराओनी पंक्तिथी स्पर्शायेला जे शान्तिनाथ जिनेन्द्रना चरणकमळ स्मरण
करवा मात्रथी ज लोकोना पापरूप संतापने दूर करे छे ते लोकना अधिनायक भगवान
शान्तिनाथ जिनेन्द्र जयवंत हो. ५.
(मालिनी)
स जयति जिनदेवः सर्वविद्विश्वनाथो
वितथवचनहेतुक्रोधलोभाद्विमुक्त : ।
शिवपुरपथपान्थप्राणिपाथेयमुच्चै-
र्जनितपरमशर्मा येन धर्मोऽभ्यधायि ।।६।।
अनुवाद : जे जिन भगवान असत्य भाषणना कारणरूप क्रोध अने लोभ
आदिथी रहित छे अने जेणे मोक्षपुरीना मार्गे चालता मुसाफरोने नास्तारूप तेम
ज उत्तम सुख उत्पन्न करनार एवा धर्मनो उपदेश आप्यो छे ते समस्त पदार्थोने
जाणनार त्रण लोकना अधिपति जिनदेव जयवंत हो. ६.
(शार्दूलविक्रीडित)
धर्मो जीवदया गृहस्थशमिनोर्भेदाद्विधा च त्रयं
रत्नानां परमं तथा दशविधोत्कृष्टक्षमादिस्ततः ।
मोहोद्भूतविकल्पजालरहिता वागसङ्गोज्झिता
शुद्धानन्दमयात्मनः परिणतिर्धर्माख्यया गीयते ।।७।।
अनुवाद : प्राणीओ उपर दयाभाव राखवो ते धर्मनुं स्वरूप छे. ते धर्म
४[ पद्मनन्दि-पंचविंशतिः