Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२ ][ पंचस्तोत्र
भावार्थ :भक्ति करनारा देवो पगे लागे छे ते वखते तेमना
नमेला मुगटनी अंदर रहेला मणिओनी कांतिने पण प्रकाश आपनार,
पापरूपी अंधकारना समूहोनो नाश करनार अने युगादिथी संसाररूपी
समुद्रमां पडेला माणसोना आश्रयरूप एवा श्री आदिनाथ जिनेन्द्रस्वामीना
बन्ने चरणने रूडे प्रकारे नमस्कार करी हुं प्रथम जिनेन्द्र श्री आदिनाथ
भगवाननी स्तुति करुं छुं. इन्द्रदेवे पण तमाम शास्त्रोनुं तत्त्वज्ञान
जाणवाथी उत्पन्न थयेली निपुण बुद्धि वडे त्रणलोकनुं चित्त हरण करे एवा
उदार स्तोत्रथी पण तेमनी स्तुति करी छे, एवा जिनेन्द्र आदिनाथस्वामीनी
हुं पण स्तुति करीश. १-२.
बुद्धया विनाऽपि विबुधार्चितपादपीठ !
स्तोतुं समुद्यतमतिर्विगतत्रपोऽहम्
बालं विहाय जलसंस्थितमिन्दुबिम्ब
मन्यः क इच्छति जनः सहसा गृहीतुम् ।।।।
बुद्धि विना ज सुरपूजीतपादपीठ!
में प्रेरी बुद्धि स्तुतिमां तजी लाज शुद्ध!
लेवा शिशु विण जळे स्थित चंद्रबिंब,
इच्छा करे ज सहसा जन कोण अन्य. ३.
भावार्थ :हे देवो द्वारा पूज्यनीय! मने चरणबुद्धि नथी तोपण
में जे आपनी स्तुति करवा मांडी छे ए मारी निर्लजता छे. हे नाथ!
बाळक सिवाय बीजुं कोण पाणीमां पडेला चंद्रमांना पडछायाने हाथोथी
पकडवानी इच्छा करी शके छे? अर्थात् मारो आ प्रयत्न बाळकना जेवो
छे. ३.
वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र ! शशाङ्ककांतान्
कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्धया
कल्पान्तकालपवनोद्धतनक्रचक्र
को वा तरीतुमलमंबुनिधिं भुजाभ्याम्
।।।।