Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 3 of 105
PDF/HTML Page 11 of 113

 

background image
भक्तामरस्तोत्र ][ ३
के’वा गुणो गुणनिधि! तुज चंद्रकांत,
छे बुद्धिथी सुरगुरुसम को समर्थ?
ज्यां उछळे मगरमच्छ महान वाते,
रे कोण ते तरी शके ज समुद्र हाथे? ४.
भावार्थ :हे गुणसमुद्र! ब्रहस्पति समान बुद्धि धारण
करवावाळा पण चंद्रमा जेवा आपना मनोहर गुणोनुं वर्णन करवा समर्थ
नथी तो मारा जेवा अल्पज्ञानीनी तो वात ज शी करवी? हे नाथ! जे
समुद्रमां प्रलयकाळना वायुना कारणथी मगरमच्छ आदि भयंकर जीवो
प्रचंडता धारण करी रह्या छे, तेवा समुद्रने पोताना बेउ हाथो द्वारा कोण
तरी शके? ४.
सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश !
कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः
।।
प्रीत्यात्मवीर्यमविचार्य मृगी मृगेंद्रम्
नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम्
।।।।
तेवो तथापि तुज भक्ति वडे मुनीश!
शक्तिरहित पण हुं स्तुतिने करीश;
प्रीते विचार बळनो तजी सिंह सामे,
ना थाय शुं मृगी शिशु निज रक्षवाने? ५.
भावार्थ :हे मुनीश! मारामा आपनी स्तुति करवानी शक्ति
नथी तोपण हुं आपनी जे स्तुति करुं छुं ए केवळ आपनी भक्तिने
वश थईने करुं छुं. पोतानी शक्तिनो विचार कर्या वगर हरणी शुं
पोताना बच्चाने सिंहथी बचाववा तेनी सामे थती नथी? अर्थात् सामे
थाय छे. ५.
अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम
त्त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरूते बलान्माम्
।।