Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration). Jinchaturvinshatika.

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श्री भूपालकवि प्रणीत
जिनचतुÆवशतिका
(शार्दूलविक्रीडित)
श्रोलीलायतनं महीकुलगृह कीर्तिप्रमोदास्पदं,
वाग्देवीरतिकेतनं जयरमाक्रीडानिधानं महत्
सः स्यात्सर्वमहोत्सवैकभवनं यः प्रार्थितार्थप्रदं,
प्रातः पश्यति कल्पपादपदलच्छायं जिनाड्धिद्वयम् ।।।।
अर्थ :मनोवांछित सिद्धि आपनार तथा कल्पवृक्षना पत्र समान
कांति धारण करनार श्री जिनेन्द्रदेवनां बन्ने चरणोना जे भव्यजीव प्रतिदिन
प्रातःकाळे दर्शन करे छे ते भव्य जीव, लक्ष्मीनुं क्रीडास्थान, पृथ्वीनुं
कुलभवन, यश अने हर्षनुं स्थान, सरस्वतीनुं क्रीडामंदिर, विजयलक्ष्मीनुं
विशाळ क्रीडास्थान, इन्द्रादि द्वारा पूज्य अने समस्त महान महान
उत्सवोनुं स्थान बने छे. १.
(वसंततिलिका)
शान्तं वपुः श्रवणहारि वचश्चरित्रं
सर्वोपकारि तव देव ततः श्रुतज्ञाः
संसारमारवमहास्थलरुन्दसान्द्र
च्छायामहीरुह भवन्तमुपाश्रयन्ते ।।।।
अर्थ :हे जिनेन्द्रदेव! आपनुं शरीर शान्त छे, वचन कर्णोने
प्रिय छे अने आपनुं चारित्र सर्व जीवोनुं कल्याण करे छे तेथी हे
संसाररूपी अत्यंत मोटा मरुस्थल माटे विशाळ सघन छायावृक्ष! ज्ञानीजन
आपनो आश्रय ले छे. २.