Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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जिनचतुर्विंशतिका स्तोत्र ][ ९५
लोकालोकमपि स्वबोधमुकुरस्यान्तः कृतं यत्त्वया,
सैषाश्चर्यपरम्परा जिनवर क्वान्यत्र सम्भाव्यते ।।।।
अर्थ :हे जिनेश्वर! ज्यां इन्द्र आज्ञा मानता हता एवुं राज्य
आपे तृण समान तुच्छ समजीने छोडी दीधुं, त्रणलोकना जीवोनो महिमा
खंडित करनार मोहमल्लने आपे क्षणवारमां जीती लीधो अने पोताना
ज्ञानरूपी दर्पणमां आप संपूर्ण लोकालोकने जाणो,
देखो छो आवी प्रसिद्ध
आश्चर्योनी परंपरा आपना सिवाय बीजा देवोमां क्यां संभवी शके छे?
अर्थात् क्यांय संभवी शकती नथी. ५.
(शार्दूलविक्रीडित)
दानं ज्ञानधनाय दत्तमसकृत्पात्राय सद्वृत्तये
चीर्णान्युग्रतपांसि तेन सुचिरं पूजाश्च बह्वयः कृताः
शीलानां निचयः सहामलगुणैः सर्वः समासादितो
दृष्टस्त्वं जिन येन दृष्टिसुभगः श्रद्धापरेण क्षणम् ।।।।
अर्थ :हे जिननाथ! जे श्रद्धाळु भव्यजीव नेत्रोने आनंद
आपनार श्रद्धापूर्वक एक क्षणवार पण आपना दर्शन कर्या छे तेणे
आत्मज्ञानी अने सदाचारी पात्रने अनेकवार दान आप्युं छे, कठोर तपोनुं
आचरण कर्युं छे, लांबा समय सुधी अनेक पूजाओ करी छे अने निर्मळ
गुणो सहित सर्व शीलव्रतोनी प्राप्ति करी लीधी छे. ६.
(शार्दूलविक्रीडित)
प्रज्ञापारमितः स एव भगवान्पारं स एव श्रुत
स्कन्धाब्धेर्गुणरत्नभूषण इति श्लाध्यः स एव ध्रुवं
नीयन्ते जिन येन कर्णहृदयालङ्कारतां त्वद्गुणाः
संसाराहिविषापहारमणयस्त्रैलोक्यचूडामणे ।।।।
अर्थ :हे त्रिभुवन चूडामणि! श्री जिनेन्द्रदेव! आपना गुण