Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 98 of 105
PDF/HTML Page 106 of 113

 

background image
९८ ][ पंचस्तोत्र
अर्थ :हे जिनराज! कोई अज्ञानी जीव श्रीकृष्ण, ब्रह्मा अने
महादेवने स्त्री सहित होवा छतां कामविजेता माने छे. परंतु देवांगनाओना
कटाक्षपातने निष्फळ करनार आप ज एकमात्र वास्तवमां ते कामदेवना
विजेता छो. १२.
(मालिनी)
किसलयितमनल्पं त्वद्विलोकाभिलाषा
त्कुसुमितमतिसान्द्रं त्वत्समीपप्रयाणात्
मन फलितममन्दं त्वन्मुखेन्दोरिदानीं
नयनपथमवाप्ताद देव ! पुण्यद्रुमेण ।।१३।।
अर्थ :हे भगवान! मारुं पुण्यरूपी वृक्ष आपना दर्शन करवानी
इच्छाथी बहु ज गाढा पांदडाओथी व्याप्त, आपनी पासे पहोंचवाथी
सघन फूलोथी विकसित थई गयुं अने अत्यारे आपना मुखचन्द्रना साक्षात्
दर्शन करवाथी अतिशय फळोथी व्याप्त थयुं छे अर्थात् आपना दर्शन
अत्यन्त पुण्यनुं कारण छे. १३.
(मालिनी)
त्रिभुवनवनपुष्प्यत्पुष्पकोदण्डदर्प
प्रसरदवनवाम्भोमुक्तिर्सूक्तिप्रसूतिः
स जयति जिनराजव्रातजीमूतसङ्घः
शतमखशिखिनृत्यारम्भनिर्बन्धबन्धुः ।।१४।।
अर्थ :हे प्रभु! त्रण लोकरूपी वनमां वधता कामदेव संबंधी
अभिमानना फेलावरूप दावानळने बुझाववा माटे आपनो सुंदर उपदेश
नूतन जलधारा समान छे अने इन्द्ररूपी मोरना नृत्यने शरू करवामां आप
साक्षात् अग्रेसर बंधु छो, एवा जिनेन्द्र समूहरूप वादळाओनो समुदाय
जयवंत हो. १४.