Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१०२ ][ पंचस्तोत्र
त्रिलोकीनाथना वचनोना रहस्यनी भावना करता अनायासे ज ते बन्नेनी
प्राप्ति करी लईए छीए. २१.
(शार्दूलविक्रीडित)
देवेन्द्रास्तव मज्जनानि विदधुर्देवाङ्गना मङ्गला
न्यापेठुः शरदिन्दुनिर्मलयशो गन्दर्वदेवा जगुः
शेषाश्चापि यथानियोगमखिलाः सेवां सुराश्चक्रिरे
तत्किं देव वयं विदध्म इति नश्चित्तं तु दोलायते ।।२२।।
अर्थ :हे देव! इन्द्रोए आपनो अभिषेक कर्यो, देवांगनाओए
मंगल गीतो गाया. गन्धर्व देवोए शरदॠतुना चन्द्र जेवा निर्मळ यशोगान
कर्या अने बाकीना बधा देवोए नियोग प्रमाणे आपनी सेवा करी. हे
भगवान! हवे अमे आपनी शी सेवा करीए? आ जातना विचारोमां
अमारुं हृदय डोली रह्युं छे. २२.
(शार्दूलविक्रीडित)
देव त्वज्जननाभिषेकसमये रोमाञ्चसत्कंचुकै
दैवेन्द्रैर्यदनर्ति नर्त्तनविधौ लब्धप्रभावैः स्फु टम्
किश्चान्यत्सुर सुरन्दरीकुचतटप्रान्तावनद्धोत्तम
प्रेङ्खदल्लकिनाझंकृतमहो तत्केन संवर्ण्यते ।।२३।।
अर्थ :हे देव! आपना जन्माभिषेक समये तांडव नृत्यमां
प्रभावित थयेला देवेन्द्रोए रोमांचरूपी कचुकी वस्त्र धारण करीने जे भव्य
नृत्य कर्युं हतुं तथा देवांगनाओना स्तनप्रदेश पासे अडेली मधुर ध्वनि
करनारी वीणाना शब्दनी जे झणझणाटी थई हती, अहो! तेनुं वर्णन कोण
करी शके? अर्थात् कोई नहि. २३.
(शार्दूलविक्रीडित)
देव त्वत्प्रतिबिम्बमम्बुजदलस्मेरेक्षणं पश्यतां,
यत्रास्माकमहो महोत्सवरसो दृष्टेरियान् वर्तते