Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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६ ][ पंचस्तोत्र
नात्यद्भूतं भुवनभूषण ! भूतनाथ !
भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्तमभिष्टुवन्तः
तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा
भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति
।।१०।।
आश्चर्य ना भुवनभूषण! भूतनाथ!
रूपे गुणे तुज स्तुति करनार साथ,
ते तुल्य थाय तुजनी, धनिको शुं पोते,
पैसे समान करता नथी आश्रितोने? १०.
भावार्थ :हे संसारना भूषण! हे जीवोना स्वामी! ए कांई
आश्चर्यनी वात नथी के आपना सत्यार्थ गुणोनी स्तुति करवावाळा पुरुषो
संसारमां आपना समान थाय; अथवा ते स्वामीथी शुं प्रयोजन छे? के
जे आ लोकमां पोताना आश्रितोने सम्पत्ति वडे पोताना बराबर करता
नथी. १०.
दृष्ट्वा भवन्तमनिमेषविलोकनीयं
नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः
पीत्वा पयः शशिकरद्युतिदुग्धसिन्धोः
क्षारं जलं जलनिधेरसितुं क इच्छेत्
।।११।।
जो दर्शनीय प्रभु एक टसेथी देखे,
संतोषथी नहि बीजे जन - नेत्र पेखे;
पी चन्द्रकान्त पय क्षीरसमुद्र केरूं,
पीशे पछी जळनिधि जळ कोण खारूं? ११.
भावार्थ :हे नाथ! एक्की नजरे जोई रहेवा योग्य आपनुं
स्वरूप एकवार जोया पछी, माणसनां नेत्र बीजे कोई ठेकाणे संतोष
पामता नथी केमके चंद्रना किरण जेवुं उज्ज्वळ क्षीरसागरनुं दूध जेवुं जळ
पीधा पछी समुद्रना खारा पाणीने पीवाने कोण इच्छे? कोई ज नहीं. ११.