Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२ ][ पंचस्तोत्र
मन्ये वरं हरिहरादय एव दृष्टा
दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति
किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः
कश्चिन्मनो हरति नाथ भवांतरेऽपि
।।२१।।
मानुं रूडुं हरिहरादिकने दीठा ते,
दीठे छते हृदय आप विषे ठरे छे;
जोवा थकी जगतमां प्रभुनो प्रकाश,
जन्मान्तरे न हरशे मन कोई नाथ. २१.
भावार्थ :हे प्रभो! हरीहर, ब्रह्मा आदि देवो मारी द्रष्टिए
पड्या ए सारुं ज थयुं छे, केम के आपने जोवाथी मारुं हृदय संतोष
पाम्युं छे एनुं कारण ए छे के ए देवो राग
द्वेष सहित छे, अने आप
रागद्वेष रहित वीतराग छो. माटे हे नाथ! आ लोकमां आपने जोवाथी
मने लाभ थयो छे ते एटलो ज के भवान्तरने विषे पण अन्य कोई देव
मारुं मन हरण करी शकनार नथी.
स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रा -
न्नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता
सर्वा दिशो दधति भानि सहस्त्ररश्मिं
प्राच्येव दिग्जनयति स्कुरदंशुजालम्
।।२२।।
स्त्री सेंकडो प्रसवती कदि पुत्र झाझा,
ना अन्य आप सम को प्रसवे जनेता;
तारा अनेक धरती ज दिशा बधीय,
तेजे स्फुरित रविने प्रसवे ज पूर्व. २२.
भावार्थ :जेम ताराओना समूहोने सर्वे दिशाओ धारण करे छे
पण तेजस्वी सूर्यने तो मात्र पूर्व दिशा ज जन्म आपे छे; तेमज सेंकडो