भक्तामरस्तोत्र ][ १३
स्त्रीओ घणाए पुत्रोने जन्म आपे छे; छतां आपना समान पुत्रने तो बीजी
कोई जनेता उत्पन्न करती ज नथी. २२.
त्वामामनंति मुनयः परमं पुमांस –
मादित्यवर्णममलं तमसः पुरस्तात् ।
त्वामेव सम्यपुगलभ्य जयन्ति मृत्युं
नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनींद्रपंथाः ।।२३।।
माने परंपुरुष सर्व मुनि तमोने,
ने अंधकार समीपे रवि शुद्ध जाणे;
पामी तने सुरीत मृत्यु जीते मुनींद्र,
छे ना बीजो कुशळ मोक्ष तणो ज पंथ. २३.
भावार्थ : — हे मुनींद्र! आपने मुनिओ परम पुरुष माने छे.
आप अंधकार विनाना होई अथवा अंधकार अर्थात् ज्ञानावरणी आदि
कर्मो आपे नष्ट करी दीधेला होवाथी तथा केवळज्ञान अवस्थामां भामंडळ
समान तेजस्वी होवाथी सूर्य समान तेजस्वी कहेवाओ छो. आप ज
अमल – रागद्वेष रहित होवाथी निर्मळ कहेवाओ छो. अने मन, वचन,
कायानी शुद्धिथी आपनुं आराधन करीने लोको मृत्यु पर विजय प्राप्त करे
छे. हे नाथ! साचुं तो ए छे के आपने सम्यक् प्रकारे पाम्या विना बीजो
कोई मोक्षनो श्रेष्ठ मार्ग छे ज नहीं. २३.
त्वामव्ययं विभुमचिंत्यमसंख्यमाद्यं
ब्रह्माणमीश्वरमनंतमनंगकेतुम् ।
योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं
ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदंति संतः ।।२४।।
तुं आद्य, अव्यय, अचिंत्य, असंख्य, विभु
छे ब्रह्मा, ईश्वर, अनंत, अनंगकेतु;