Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 25 of 105
PDF/HTML Page 33 of 113

 

background image
भक्तामरस्तोत्र ][ २५
अंभोनिधौ क्षुभितभीषणनक्रचक्र
पाठीनपीठभयदोल्वणवाडवाग्नौ
रंगतरंगशिखरस्थितयानपात्रा
स्रासं विहाय भवतः स्मरणाद् वृजन्ति ।।४४।।
ज्यां उछळे मगरमच्छ तरंग झाझा,
ने वाडवाग्नि भयकारी थकी भरेला;
एवा ज सागर विषे स्थित नाव जे छे,
ते निर्भये तुज तणा स्मरणे तरे छे. ४४.
भावार्थ :भयंकर मगमच्छ आदि जळचर प्राणीओ जेनी अंदर
उछळी रह्या छे अने भयानक वडवाग्नि जेनी अंदर वसे छे एवा भयंकर
सागर मध्ये वहाणमांनां माणसो आवी पडेला होय छे ते पण आपना
स्मरणथी निर्भयपणे जोखमाया वगर तरीपार जई शके छे. ४४.
उद्भूतभीषणजलोदरभारभुग्नाः
शोच्यां दशामुपगताश्च्युतजीविताशाः
त्वत्पादपंकजरजोऽमृतदिग्धदेहा
मर्त्या भवंति मकरध्वजतुल्यरुषाः
।।४५।।
जे छे नम्या भयद रोग जलोदरेथी
पाम्या दशा दुःखद आश न देहे तेथी;
त्वत्पादपद्म रज अमृत निज देहे
चोळे बने मनुज काम समान रूपे. ४५.
भावार्थ :प्रभो! जे माणसो भयंकर जळोदर वगेरे दर्दना
भारथी दुःखी थई गया छे, अने जेमनी स्थिति अत्यंत शोचनीय थई
गई छे अथवा जेओ पोताना जीवनथी सर्वथा निराश थई गया छे एवा
मनुष्यो पण आपना चरणकमळोनी रज
धूळ पण पोताना शरीर पर
लगाडवाथी कामदेव जेवा सुंदर थई जाय छे. ४५.