Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२६ ][ पंचस्तोत्र
आपादकंठमुरुशृंखलवेष्टितांगा
गाढं बृहन्निगडकोटिनिघृष्टजंघाः
त्वन्नाममंत्रमनिशं मनुजाः स्मरंतः
सद्यः स्वयं विगतबंधभया भवंति
।।४६।।
बेडी जडी पगथी छेक गळा सुधीनी,
तेनी झीणी अणिथी जांग घसाय जेनी;
एवा अहोनिश जपे तुज नाममंत्र,
तो ते जनो तुरत थाय रहित बंध. ४६.
भावार्थ :हे नाथ! जेना पगथी माथा सुधी आखुं शरीर मोटी
मोटी लोढानी सांकळोथी खूब मजबूत जकडाई गयुं छे तथा कठोर, तीक्ष्ण
बेडीओथी जेओनी जांघो खूब घसाई रही छे एवा लोक पण आपना
नामरूपी पवित्र मंत्रनुं निरंतर स्मरण करवाथी बहु जलदीथी ए बंधनना
भयथी मुक्त थई जाय छे. ४६.
मत्तद्विपेंद्रमृगराजदवानलाहि
संग्रामवारिधिमहोदरबंधनोत्थम्
तस्याशु नाशमुपयाति मयं भियेव
यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते
।।४७।।
जे मत्त हस्ति, अहि, सिंह, दवानलाग्नि,
संग्राम, सागर, जलोदर, बंधनोथी;
पेदा थयेल भय ते झट नाश पामे,
त्हारूं करे स्तवन आ मतिमान पाठे. ४७.
भावार्थ :हे नाथ! जे बुद्धिमान मनुष्य आ स्तोत्रनो निरंतर
(हरहंमेश) पाठ करे छे ते उन्मत्त हाथी, सिंह, दावानळ, सर्प, युद्ध,
समुद्र, जलोदर अने बंधन विगेरेथी थता भयथी तुरत ज मुक्त थई जाय
छे. मतलब के एवा लोको आगळथी भय डरी गयो होय तेम नष्ट थई
जाय छे. ४७.