Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भक्तामरस्तोत्र ][ २७
स्तोत्रस्त्रजं तव जिनेंद्र गुणैर्निबद्धां,
भक्त्या मया विविधवर्णविचित्रपुष्पाम्
धत्ते जनो य इह कण्ठगतामजस्त्रं,
तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः
।।४८।।
आ स्तोत्रमाळ तुजना गुणथी गुंथी मैं
भक्तिथकी विविध वर्णरूपी ज पुष्पे;
तेने जिनेन्द्र! जन जे नित्य कंठ नामे,
ते मानतुंग अवशा शिव लक्ष्मी पामे. ४८.
इति आदिनाथ स्तोत्रं
भावार्थ :हे जिनेन्द्र! आपना पवित्र गुणोथी अथवा प्रसाद
आदि माधूर्य आदि गुणोथी गुंथाएली आ स्तोत्ररूपी माळाने जे मनुष्य
पोताना कंठमां धारण करे छे
सुंदर सुंदर अक्षररूपी विचित्र फूलथी
गुंथाएली पुष्पमाळा धारण करे छे तेवा उन्नत हृदयवाळा लोकोने तथा
आ स्तोत्र रचवावाळा श्री मानतुंग आचार्यने राजवैभव तथा स्वर्ग
मोक्षरूपी लक्ष्मी अवश्य प्राप्त थाय छे. अर्थात् आ पवित्र स्तोत्रनो
हरहंमेश श्रद्धा भक्ति साथे, पाठ करनार लोकोने धन संपत्ति, राज वैभव,
स्वर्ग विगेरे विभूति कोईपण जातना कष्ट भोगव्या सिवाय प्राप्त थाय
छे. आ मंत्रना प्रभावथी राज्य, धन, वैभव, ऐश्वर्य, पुत्र, निरोगता
आदि प्राप्त थाय छे ए तो स्तोत्रना अनुषांगिक
कोईपण जातना कष्ठ
विना मळी जाय एवुं फळ छे. परंतु आ स्तोत्रनुं मुख्य फळ तो सर्वत्र
मोक्ष पदनी प्राप्ति होईने मोक्षलक्ष्मी प्राप्त करे छे. राजवैभव
धनसंपत्ति
आदि मळवुं ए एनुं अनुषांगिक फळ छे. ४८.
स्तोत्र कर्तानी इच्छा छे के भव्यजनो आ स्तोत्रनो निरंतर पाठ करी
धर्मलाभ उठावी पोताना आत्मानुं कल्याण करे.
इति श्री मानतुंगआचार्यविरचित श्री आदिनाथस्तोत्र......