Panch Stotra-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कल्याणमंदिरस्तोत्र ][ ३७
अत्रे पाणी पण अमृत आ एम रे! चिंतवातुं,
निश्चेथी शुं विषविकृतिने टाळनारुं न थातुं? १७.
अर्थ :जेम पाणी पण ‘आ अमृत छे’ एवी अतूट श्रद्धा
राखवाथी विषना विकारथी उत्पन्न थती पीडानो नाश करी नाखे छे तेवी
ज रीते हे भगवान्! आ संसारमां ज्यारे योगीजनो अभेद बुद्धिथी
आपनुं ध्यान करे छे त्यारे पोताना आत्माने आपनी समान चिंतवीने
आपना जेवा थई जाय छे. १७.
त्वामेव वीततमसं परवादिनोऽपि,
नूनं विभो हरिहरादिधिया प्रपन्नाः
किं काचकामलिभिरीश सितोऽपि शंखो,
नो गृह्यते विविधवर्णविपर्ययेण ।।१८।।
विभु तुंही तमरहितने वादीओए अनेरा,
निश्वे शंभु हरि प्रमुखनी धीथी मानी रहेला;
धोळो शंखे तदपि कमळायुक्तथी जिनराय!
नाना वर्णे विपरीत मतिए न शुं ते ग्रहाय? १८.
अर्थ :जेम कमळानो रोग जेने थयो होय ते व्यक्ति सफेद
वर्णवाळा शंखने पण लीला, पीळा वगेरे विपरीत वर्णोवाळो कल्पनाबुद्धिथी
देखे छे तेवी ज रीते हे स्वामी! रागद्वेषादि अंधकाररहित (परम वीतराग
एवा) आपने अन्यमति (मिथ्यात्वादि रोगथी तेमनुं चित्त ग्रसायुं होवाथी)
ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदिनी बुद्धिथी पूजे छे. १८.
धर्मोपदेशसमये सविघानुभावा
दास्तां जनो भवति ते तरुरप्यशोकः
अभ्युद्गते दिनपतौ समहीरुहोऽपि,
किं वा विबोधमुपयाति न जीवलोकः
।।१९।।